भोजन के विषय पर हमारे समाज में जागरुकता और
ज्ञान का नितांत अभाव देखा जाता है। सामान्य लोग यह मानते हैं कि भोजन तो पेट भरने
के लिये है उसका मानसिकता से कोई संभव नहीं है। जबकि हमारे अध्यात्मिक दर्शन के
अनुसार उच्छिष्ट और बासी पदार्थ तामसी बुद्धि तथा प्रवृत्ति वाले को प्रिय होते
हैं-यह हमारे पावन ग्रंथ में कहा गया है।
हम इसके आगे जाकर यह भी कह सकते हैं कि उच्छिष्ट और बासी पदार्थ के सेवन से
बुद्धि और प्रवृत्ति तामसी हो ही जाती है। जिस तरह भारत में बड़ी कंपनियों के
आकर्षक पैक में रखे भोज्य पदार्थ हैं उसे हम इन्हीं श्रेणी का मानते हैं। स्वयं इसका सेवन कभी नहीं किया क्योंकि
भगवत्कृपा से घरेलू भोजन हमेशा मिला। बाहर भी गये तो ऐसे स्थानों पर भोजन किया जो
घर जैसे ही थे। इसलिये इन दो मिनट में तैयार होने वाले भोज्य पदार्थों के स्वाद का पता नहीं पर भारतीय जनमानस में उनकी
उपस्थिति अब पता लगी जब एक बड़ी उत्पाद कंपनी के भोज्य पदार्थ पर प्रतिबंध लगाने का
प्रस्ताव आया।
हैरानी है सारे प्रचार माध्यम कागज में बंद
बड़ी कंपनियों के भोज्य पदार्थों पर संदेह जता रहे हैं तब भी कुछ लोग उसका सेवन
करते हुए कैमरे के सामने कह रहे हैं कि उनके बिना नहीं रह सकते। इनका स्वाद अच्छा
है।
हमारा तो यह भी मानना है कि कुछ दिन में जब
बड़ी कंपनियों के भोज्य उत्पाद का विवाद थम जायेगा जब लोग फिर इसका उपयोग पूर्ववत्
करने लगेंगे जैसे कि कथित शीतल पेय का करते हैं।
21 जून पर आने वालेे योग दिवस पर जिन महानुभावों
को प्रचार माध्यमों पर चर्चा के लिये आना है वह श्रीमद्भागवत् गीता के संदेशों की
चर्चा अवश्य करें। एक योग साधक भोजन पेट में दवा डालने की तरह प्रयुक्त करता
है। वह स्वादिष्ट नहीं पाचक भोजन पर ध्यान देता है। पता नहीं हमारी यह बात उन तक पहुंचेगी कि नहीं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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