समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, June 25, 2015

देह का स्वास्थ्य आकर्षण बल और संगठन बाह्य संपदा की तरह होता है-पतंजलि योग साहित्य के आधार पर चिंत्तन लेख(fitnes, glamor, power and organigesion is outer assets in life-A Hindu hindu thought article based on patanjali yoga sahitya)

                              हमारा बाह्य रूप सारा संसार देखता है इसलिये उसे आकर्षक बनाये रखने का प्रयास भी करना चाहिये। मनुष्य के पास ढेर  सारा धन हो पर उसका रूप और आकृति प्रभावी न हो तो लोग उसकी तरफ आकर्षित नहीं होते।  बल न हो तो मनुष्य दूसरे की क्या अपनी ही रक्षा नहीं कर पाता। अधिकतर लोग धन संपदा के फेर में यह सोचकर पड़े रहते हैं कि भौतिक वैभव उन्हें प्रभावी बना देगा।  जिनके पास धन आ जाता है वह तो यही मानते हैं कि सर्वशक्तिमान की उन पर सारी कृपा है इसलिये पूरा समाज उसका सम्मान करेगा।  इसी सोच का परिणाम यह है कि हमारे देश में विकास के बढ़ते स्तर के साथ ही स्वास्थ्य, नैतिकता और बौद्धिक क्षमता में पतन देखा जा रहा है।  लोग छोटी बात पर भारी उत्तेजना में आकर वर्जित काम कर बैठते हैं।  संपत्ति के संग्रह हो जाने पर धनी लोग समाज से स्वयं को प्रथक मानते हैं। यही कारण है कि हमारे देश में सामाजिक संगठन कमजोर हो गये हैं। इसलिये समाज के हर वर्ग पर जीवन का संकट मुंह बायें खड़ा दिखता है।
पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि----------------रूपलावण्यबलवज्रसंहननत्वानि कायसम्यत्।।                              हिन्दी में भावार्थ-रूप, देह की  आकृति, बल और वज्र जैसा संगठन कार्य संपत्ति है।
                              श्रीमद्भागवत् गीता में जिस कर्मयोग की प्रेरणा दी गयी है वह आध्यात्मिक रूप से दृढ़ होने के बाद सांसरिक विषयों में सक्रिय रहने की कला भी सिखाती है।  हमारे यहां कुछ लोग योग को केवल अध्यात्मिक तो कुछ दैहिक साधना मानते हैं पर इसके अभ्यास से साधक आंतरिक तथा बाह्य दोनों ही दृष्टि से मजबूत होता है। मनुष्य भले ही योग साधना एकांत में करे पर अपनी दिनचर्या में बाह्य तत्वों का भी अध्ययन करते रहना चाहिये। कर्म के बिना किसी का जीवन निर्वाह नहीं हो सकता इसलिये उसे अपने साथ सहयोगी या संगठन रखना ही होता है। जहां उसे अपनी देह का स्वास्थ्य, आकर्षण तथा बल बनाये रखने का प्रयास के साथ ही वअपने साथ जीवन क्षेत्र में सक्रिय सहयोगियों को संगठित करना चाहिये। देह का स्वास्थ्य, आकर्षण तथा संगठन भौतिक संपदा की तरह होता है, यह मानना चाहिये।
................................
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका 
६.अमृत सन्देश  पत्रिका

No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें