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Wednesday, February 12, 2014

चाणक्य नीति-जीवन का दर्शन कुत्ते से भी सीखा जा सकता है(chanakya neeti-jiwan ka darshan kutte se bhi seekhna chahiey)



      यह विचित्र बात है कि श्वान या कुत्ते को एकदम घटिया पशु कहा जाता है। जब कोई एक व्यक्ति दूसरे  के विरुद्ध क्रुद्ध होकर विषवमन करना हो तो उसे कुत्ता कह कर अपनी भडास निकालता है। इतना ही नहीं अगर किसी व्यक्ति को उत्तेजित करना हो तो उसे भी यही उपाधि दी जाती है।  हालांकि समाज में कुत्ते को पालने वाले हमेशा ही रहे हैं। गांव हो या शहर कुत्ते को लोग पालते हैं। कुत्ते की वफादारी का गुण विश्व विख्यात है पर उसका यह भी गुण है कि थोड़ा मिलने पर भी वह प्रसन्न हो जाता है।  अक्सर कुत्ते सोते मिलते हैं पर जरा आहट होने पर ही वह जाग जाते हैं। इतना ही नहीं जब स्वामी पर संकट हो तो कुत्ता अपनी जान की भी परवाह नहीं करता। 
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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बह्वाशी स्वल्पसन्तुष्टः सुनिद्रो लघुचेतनः।
स्वामिभक्तश्च शुरश्च बडेते श्वानतो गुणाः।।
     हिन्दी में भावार्थ-समय के अनुसार बहुत खाना या कम ही खाने से संतुष्ट हो जाना, अवसर मिले तो खूब सोना पर आहट होते ही जाग जाना तथा वफदारी के साथ ही वीरता का गुण कुत्ते से सीखना चाहिये।
      देखा जाये तो सभी पशु पक्षियों में कोई न कोई गुण होता है पर इंसान उसे अनदेखा कर देता है। इंसानों में सभी बुरे हो नहीं सकते पर यह भी सच है कि स्वाजातीय जीवों के लिये इंसान ही खतरा होता है।  अपराध विशेषज्ञों के अनुसार इंसान के लिये खतरा दूसरे इंसान कम अपने निकटस्थ ज्यादा होते हैं। स्त्रियों के विरुद्ध अपराध उनके करीबी ही ज्यादा करते हैं।  हम जब धोखे की बात करते हैं तो वही देता है जिस पर हम अपना समझकर यकीन करते हैं।  गद्दारी का शिकार आदमी तभी होता है जब वह किसी को मित्र मानकर उसे अपनी गुप्त बातें बताता है।
      अधिकतर लोग अपनी मतलब की वजह से कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। उन्हें मित्र या रिश्ते का ख्याल नहीं आता।  हम स्वयं ऐसा न करें यह अच्छी बात है पर दूसरे पर यकीन करते हुए उसकी पिछली पृष्ठभूमि देखना चाहिये।  हमें अपने जीवन के प्रति सतर्कता बरतना चाहिये और किसी पर दूसरे पर विश्वास करते तो दिखें पर करें नहीं। दूसरी बात यह कि हमें कभी स्वयं किसी से गद्दारी नहीं करना चाहिये। अगर किसी का काम न करना हो तो उससे वादा कभी नहीं करें। जीवन का सिद्धांत यही है कि जैसा व्यवहार आप दूसरे से चाहते हैं वैसा स्वयं ही करें।

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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