इस समय देश में धर्मनिरपेक्षता
पर बहस चल रही है। कुछ पेशेवर विचारक कहते हैं कि हमारी संस्कृति धर्म निरपेक्ष है
जबकि अध्यात्मिक चिंत्तकों का मानना है कि धर्म धारण करने का विषय है।
गीता में कर्म ही
धर्म का पर्याय है जिससे मनुष्य निरपेक्ष नहीं रह सकता। उसमें भक्ति के तीन प्रकार
पंथनिरपेक्षता का सटीक प्रमाण है। भारतीय ज्ञान के अनुसार कर्म ही धर्म रूप है जिससे
निरपेक्षता संभव नहीं है पर भक्ति के किसी भी रूप से भेद न रखकर पंथनिरपेक्ष होना ही
चाहिये।
भारतीय अध्यात्मिक दर्शन पर चलने वाले कर्म में ही
धर्म देखते हैं इसलिये निरपेक्ष नहीं होते। भक्ति के प्रथक रूप स्वीकार करने कारण पंथरिनपेक्ष
तो स्वाभाविक रूप से होते ही हैं।
विश्व में अकेला भारतीय ज्ञान ही कर्म निर्वाह ही धर्म मानता है तो भक्ति के
अनेक रूप को स्वीकार कर पंथनिरपेक्ष रहने की प्रेरणा भी देता। आपकीबात आज भी आम भारतीय
धर्मनिरपेक्षता शब्द से आत्मीय संबंध नहीं जोड़ पता क्योंकि वह स्वाभाविक रूप से पंथनिरपेक्ष
होता ही है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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