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Saturday, July 19, 2014

खास लोगों के विरोधी भी बहुत होते हैं-कौटिल्य के अर्थशास्त्र के आधार पर चिंत्तन लेख(khas logon ke virodhi bhi bahut hote hain-A hindu hindi religion message based on economics of kautilya)



            जिस व्यक्ति के पास धन, प्रतिष्ठा और बाहुबल की कमी है उसके शत्रु अधिक नहीं होते। सीधी बात कहें तो इस संासरिक जीवन में आम आदमी की बजाय खास आदमी के लिये खतरे बहुत होते हैं।  इस संसार में तीन प्रकार की प्रवृत्ति के लोग होते हैं-सात्विक, राजसी और तामसी-इनमें सबसे अधिक सक्रियता राजसी प्रकृत्ति के लोगों की होती है।  इसे यूं भी कहा जा सकता है कि जीवन में अपने कार्यक्षेत्र में अधिक से अधिक सक्रियता दिखाकर पैसा, पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करना ही राजसी प्रकृत्ति का प्रमाण हो सकता है।  जिन लोगों में लोभ, मद, मोह, क्रोध तथा कामनाओं का भंडार होता है वह निरंतर सक्रिय रहते हैं और इसी कारण उन्हें कड़ी प्रतिद्वंद्वता का सामना भी करना होता है। उनकी सफलताओं के कारण लोग उनसे ईर्ष्या तो करते ही हैं पर अतिसक्रियता के दोष से उनके शत्रु भी बन जाते हैं।  यही कारण है कि संतोष सदा सुखी होता है और लालची सदैव कष्ट उठाता है।

कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया कि
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न जातु गच्छेद्धिश्वासे सन्धितोऽपि हि बुद्धिमान।
अद्रोहसमयं कृत्यां वृत्रमिन्द्रः पुरात्त्वद्यीत्।।

     हिन्दी में भावार्थ-अगर किसी कारणवश किसी से संधि भी की जाये तो उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए। मैं वैर नहीं करूंगायह कहकर भी इन्द्र ने वृत्रासुर को मार डाला था।
ज्यायांसं सिंहः साहसं यथं मध्नाति दन्तिनः।
तस्मार्तिह इवोदग्रमात्मानं वीक्ष्ण सम्पतेत्।।

     हिन्दी में भावार्थ-शक्तिशाली सेना को साथ लिए शत्रु को युद्ध में मारने पर राजा का प्रभाव बढ़ता है। इसी प्रताप के कारण सभी जगह उसके दूसरे शत्रु भी पैदा होते हैं।

      मनुष्य जीवन अद्भुत है और रहस्यमय भी। मनुष्य को अन्य जीवों से अधिक बुद्धि वरदान में मिली है और वही उसकी सबसे शत्रु और मित्र भी है। जहां पशु पक्षी तथा अन्य जीव मनुष्य के एक बार मित्र हो जाते हैं तो फिर शत्रुता नहीं करते मगर स्वयं मनुष्य ही एक विश्वसनीय जीव नहीं है। वह परिस्थितियों के अनुसार अपनी वफादारी बदलता रहता है। अतः यह कहना कठिन है कि कोई मित्र अपने संकट निवारण या स्वार्थ सिद्धि का अवसर आने पर विश्वासघात नहीं करेगा। ऐसे में किसी शत्रु से संधि हो या मित्र से नियमित व्यवहार की पक्रिया उसमें कभी स्थाई विश्वास की अपेक्षा नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा एक बात यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दूसरे के प्रति कठोरता या हिंसा का व्यवहार न करें। अनेक बार मनुष्य अपने को प्रभावशाली सिद्ध करने के लिये अपने से हीन प्राणी पर अनाचार करता है या फिर हमला कर उसे मार डालता है। इससे अन्य मनुष्य डर अवश्य जाते हैं पर मन ही प्रभावशाली आदमी के प्रति शत्रुता का भाव भी पाल लेते हैं। समय आने पर प्रभावशाली आदमी जब संकट में फंसता है तो वह उनका मन प्रसन्न हो जाता है। इसलिये जहां तक हो सके क्रूर तथा हिंसक व्यवहार से बचना चाहिए।


संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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1 comment:

Unknown said...

bahtt achha lekh hai.

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