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Friday, July 04, 2014

संत कबीर वाणी-शब्दों को तोल मोल कर बोलें(sant kabir wani-shabdon ko tol mol ka bolen)



                                 कहा जाता है कि मनुष्य को यही जीभ छाया में बिठाती है और यही धूप में जलने के लिये बाध्य करती है।  आजकल के भौतिकतावाद के चलते लोगों के व्यवहार, विचार, और व्यक्तित्व में नैतिक सिद्धांतों का अभाव हो गया है।  पद, पैसे और प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुंचने वाले लोगों में इतना अहंकार आ जाता है कि वह सोचते हैं कि उनकी वाणी से निकलने वाला हर वाक्य ब्रह्मवाक्य है जिसे आम इंसान उनकी छवि के प्रभाव में स्वीकार कर लेगा।  इस पर आधुनिक प्रचार माध्यमों में प्रचार पाने का मोह ऐसे लोगों को अनाप शनाप बात करने के लिये प्रेरित करता है।
                                 हम देख रहे हैं कि जिस तरह प्रचार माध्यमों में आतंकवादियों के व्यक्तित्व तथा गतिविधियों को प्रचार मिलता है उससे वह अधिक खतरनाक होते जा रहे हैं।  इस प्रचार की वजह से उन्हें धन भी मिलता है जिससे वह मदांध हो जाते हैं।  वह अपने आतंकवाद के लिये ऐसे कारण बताते हैं गोया कि लोग उनकी बात पर यकीन कर लेंगे। यह अलग बात है कि कालांतर में उनके हश्र की चर्चा भी यही प्रचार माध्यम करते हैं।
संत कबीर कहते हैं कि
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कबीर देखी परखि ले, परखि के मुखा बुलाय।
जैसी अन्तर होवगी, मुख निकसैगी आय।
                                 सामान्य हिन्दी में भावार्थ-किसी के सामने देख परख कर अपना मुख खोलना चाहिये।  हम अपना विचार अंतर्मन में बनाते हैं वैसे ही शब्द मुख से निकलते हैं।
पहिले शब्द पिछानिये, पीछे कीजै मोल।
पारख परखै रतन को, शब्द का मोल न तोल।
                                 सामान्य हिंन्दी में भावार्थ-पहलें किसी के शब्दों का अर्थ समझने के बाद अपना विचार कायम करना चाहिये। जौहरी हीरे को परख सकता है पर शब्द का कोई मूल्य नहीं होता।
                                 अनेक ऐसे समाचार आते हैं जिससे यह पता लगता है कि बिना बात के हिंसक वारदात में लोग अपनी जान गंवा देते हैं। बाद में वजह यही बताई जाती है कि कटु वाणी की वजह लोगों के बीच झगड़ा हुआ। कहने का अभिप्राय यह है कि अगर वाणी का उपयोग करने से पहले मन और बुद्धि का अभ्यास कर अपना विचार कायम करने के बाद उसे अभिव्यक्ति का रूप दें तो ही अच्छा है। हमने देखा भी होग कि कुछ लोग अपनी वाणी पर संयम रखते हुए सरलता से जीवन बिताते हैं तो कुछ अपने ही कटुशब्दों के कारण हमेशा कष्ट उठाते हैं। इसलिये हमेशा ही अपनी वाणी पर नियंत्रण कर मन और बुद्धि से परिष्कृत शब्दों का उपयोग करना चाहिए।

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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