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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, October 26, 2013

न सोना दिखे न चांदी, चल गयी मेले में भीड़ की आंधी-हिन्दी चिंत्तन लेख(na sona dikhe n chanti,chal gayi mele mein bheed ki aandhi-hinci chinttan lekh)



                                                अभी तक उन्नाव के डौंडिया खेड़ा गांव की  उस पुरानी एतिहासिक इमारत में खुदाई चल ही रही है जिसमें एक हजार टन सोना दबे होने का दावा किया गया था।  भारतीय पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों का एक दल वहां लगा हुआ है और प्रचार माध्यमों की जानकारी को सही माने तो  इस तरह की कोई संभावना नहीं लग रही कि वहां एक हजार टन सोना मिल जायेगा।  एक हजार टन ही क्या एक ग्राम सोना भी मिल जाये तो बहुत है। कहा जाता है कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया, पर यहां पर कुछ कांच की चूड़ियां मिली है इसलिये नयी कहावत का जन्म हुआ ही माना जा सकता है कि खोदा महल मिली कांच की चूड़ियां।
                        वाकई जंगहंसाई हुई है।  जब खुदाई शुरु हुई तब टीवी समाचार चैनलों ने अपने विज्ञापनों के विराम के दौरान थोड़े समाचार और थोड़ी बहस चलाई पर चूंकि लोग उसे सुनते हैं इसलिये इसकी चर्चा खूब हुई।  अभी तक हमने ऐसे किस्से तो सुने हैं कि अमुक संत या तांत्रिक के कहने पर किसी ने इधर तो किसी ने उधर खजाना पाने की लालच में खुदाई  करवाई पर यह पहली बार हुआ कि सरकारी स्तर पर यह काम हुआ।  हैरानी इस बात है कि भारत के पुरातत्वविद इस चक्कर में फंस कैसे गये? ऐसा लगता है कि उन्नाव के जिस संत के कहने पर यह खुदाई शुरु हुई उसकी स्थानीय छवि के प्रभाव का शिकार भारतीय पुरातत्त विशेषज्ञ भी हो गये जिस तरह आम लोग कभी कभी हो जाते हैं।  वैसे देश में पुराने महल में खुदाई  यह हैरान करने वाली बात नहीं है।  इस महल की खुदाई भी होना चाहिये थी पर जिस तरह का प्रचार हुआ उसने देश के लोगों को हैरान कर दिया है।  अनेक सामाजिक, अध्यात्मिक तथा पत्रकारिता क्षेत्र के विद्वानों ने तो तत्काल इस महल खुदाई बंद करने की मांग इस आधार पर की इससे आम लोगों में गलत संदेश जा रहा है।  खुदाई का काम बिना प्रचार के होता तो शायद कोई आपत्ति नहीं करता पर ऐसा लगता है कि संत समर्थकों को प्रचार पाने का मोह था इसलिये एक मामूली खबर भारी सनसनी बन गयी।  मजेदार बात यह कि खुदाई प्रारंभ होने से पहले ही वहां लोगों का एक संक्षिप्त समयकालीन मेला गया। खाने पीने के सामानों की अस्थाई दुकानें वहां लग गयी। न सोना न दिखे न चांदी, चली मेले में भीड़ की आंधी।
                        हम जैसे अध्यात्मिक ज्ञान साधकों के लिये सोना न मिलना निराशा की बात नहीं वरन् समाज की सच्चाई को समझने का एक बहुत अवसर मिला उससे खुशी हुई ।  आज भी समाज में शिक्षित पर अज्ञानी लोगों को एक बहुत बड़ा वर्ग है जो इस तरह की खबरों में विश्वास के साथ दिलचस्पी लेता है।  उस संत के प्रमुख शिष्य ने यहां तक दावा किया था कि उस संत में इतनी शक्ति है कि वह 21 हजार टन सोना देश को दिलवायेंगे। सोने के बाग लगा देंगे। उनके बोलते हुए देखकर ऐसा लगा कि उन जैसी बातें पहले भी हम कई बार सुने चुके हैं।  ऐसे एक नहीं दस लोग हैं जिनको हमने सोना के खजाने का पता बताने का दावा करते सुना है।  अगर लोग इस तरह की बातों पर यकीन कराने वाले होते तो हर घर खुदा हुआ मिलता है।  भारतीय पुरातत्व विभाग के मुखिया ने पहले ही इतनी मात्रा में सोना मिलने की संभावना से इंकार किया था पर संत के प्रमुख शिष्य ने सोने का राग अलापते हुए प्रचार माध्यमों को सनसनी फैलाये रखने की जो सुविधा प्रदान की वह आश्चर्यजनक थी।  वैसे एक बात लगी कि हमारे देश के लोगों एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसी बातों पर यकीन नहीं करता। भले ही प्रचार माध्यमों से बाबा के समर्थकों को दिखाकर यह साबित करने का प्रयास किया कि यह देश अंधविश्वासों को मानने वाला है पर हमने अपने आसपास के लोगों का रुझान देखा सभी लोगों ने इसका विरोध किया।  एक आदमी भी ऐसा नहीं मिला जिसे लगता हो कि वहां खोदने पर खजाना मिलने की संभावना से सहमत हो।
                        इस दौरान अध्यात्मिक विद्वानों ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि स्वयं संत कभी प्रचार पाने के लिये सामने नहीं आये और उनकी स्थानीय छवि उनके सत्कर्मों के कारण स्वच्छ भी है पर खजाने के विषय में उनकी भूमिका का भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान से कोई सरोकार नहीं है।  यही बात अच्छी लगी।  जब कथित संतों के साथ सांसरिक विषयों से जुड़े विवाद आते हैं तब सबसे अधिक भारतीय अध्यात्मिक दर्शन को संदिग्ध बनाया जाता है। कम से कम अध्यात्मिक विद्वानों ने अपने विचारों ऐसी बहसों में सकारात्मक पक्ष रखकर अपना दायित्व अच्छी तरह निभाया है। इसके लिये वह बधाई के पात्र हैं।
 

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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