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Monday, June 24, 2013

चाणक्य नीति-अपने हाथ से काम करें तो शोभा बढ़ती है (chankya policy in hindi-apna hath jagannath)



              सांसरिक  विषयों में निरंतर लिप्तता मनुष्य को आत्ममंथन का समय नहीं देती। इस कारण मनुष्य विषयों में इतना आसक्त होता है कि उसका मन बेबस होकर उनमें ही बंधा रहता है। यह सांसरिक विषय मनुष्य की बुद्धि को बहिर्मुखी बना देते हैं। एक समय ऐसा आ जाता है कि मनुष्य की बुद्धि पराधीन हो जाती है और जब उसे कहीं एकांत मिलता है तब वह घबड़ा जाता है। वह तत्काल कोई ऐसा विषय ढूंढता है जिसमें वह व्यस्त होकर अपनी इस घबड़ाहट को मन से दूर कर सके।  यह अलग बात है कि वह निरंतर विषयों में लिप्त रहते हुए अपनी रचनात्मक शक्ति खो बैठता है जिससे उसमें कुछ नये करने की सोच नहीं बन पाती। हमारे देश ही नहीं वरन्  पूरे विश्व समाज में यही स्थिति है। यही कारण है कि सभी लोग पेशेवर मनोरंजन व्यवसायियों के जाल में फंसे हैं। इससे बाज़ार के सौदागर तथा उनके अनुयायी प्रचारक नित नये स्वांग रचकर मनुष्य समाज पर नियंत्रण किये हुए हैं।  क्रिकेट से आदमी बोर हो तो  टेनिस, उससे बोर हो तो फुटबाल और उससे भी उकता जाये तो फिर  बैटमिंटन का खेल सामने रख दिया जाता है। फिल्मों में यही स्थिति है। कभी स्टंट फिल्म तो कभी कॉमेडी कभी हारर कथानक पर फिल्म बनाकर लोगों की आंखों का चश्मा बदला जाता है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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स्वहस्ग्रथिता माला स्वहस्तधृष्अच्नछन्म्।
स्वहस्तलिखितं स्तोत्रं शक्रस्यापि श्रियं हरेत्।।
      हिन्दी में भावार्थ-अपने हाथ से  गूंथी हुई माला, अपने हाथों से घिसा गया चंदन और अपने हाथ से लिखा हुए स्तोत्र का इतना मन पर प्रभाव होता है कि इंद्र की शोभा भी फीकी दिखाई देती है।
       इतने सारे स्वांग देखकर भी आदमी जब उकता जाये तो  उसके सामने अध्यात्कि चर्चा के नाम पर धार्मिक कथायें इस तरह सुनाई जाती हैं जिससे उसका मनोरंजन हो।  पेशेवर धार्मिक व्यवसायिों ने धर्म के नाम पर समाज को अपने बंधन में बांध रखा है।  प्रश्न यह है कि इस बंधन से कैसे छूटा जाये?
      इसका उपाय यह है कि हमें अपने हाथ से कोई ऐसा काम करना चाहिये जिससे पैसा हमें न मिले तो कोई बात नहीं पर मन को इस बात का अनुभव होना चाहिये कि हम कुछ अनोखा कर रहे हैं। आपने देखा होगा लेखक, कलाकार तथा गायक कलाकर कभी अपना जीवन नीरस होने की शिकायत नहीं करते।  पहले लोग अपने हाथ से माला जापकर या अपने हाथ घिसे हुए चंदन से स्वयं को अलंकृत करते थे।  माला जापने से किसी को भगवान भले ही नहीं मिला हो पर इससे अनेक लोगों ने अपने मन पर पूरे जीवन भर अपना नियंत्रण रखा।
       कहा भी जाता है कि अपनी घोल तो नशा होय।  हम अक्सर अनेक लोगों से कहते हैं कि इतना पैसा कमा कर क्या करोगे? हम अनेक लोगों के बारे में यह भी सोचते हैं कि  वह इतना पैसा कमाकर क्या करेंगे? दरअसल इस संसार में मन को बहलाने का सबसे आसान साधन पैसे कमाने में लग जाना है।  यही लोग सभी करते हैं। यह अलग बात है कि कालांतर में यह शौक भी दम तोड़ देता है।  उस समय मनुष्य को खालीपन लगने लगता है।  इसलिये अपने साथ कोई ऐसा शौक रखना चाहिये जो मायाजाल से मुक्त हो। सभी लोग लेखकर, चित्रकार या कलाकर नहीं कर सकते।  ऐसे में  अपने मुंह से भजन गाते या फिर बागवानी करते रहना इसका अच्छा उपाय हो सकता है।  कहनें का अभिप्राय यह है कि अपनी अभिव्यक्ति को निष्काम कर्म के माध्यम से बाहर आने देना चाहिये।  यह बचपन से ही स्वतः पड़ जाये तो भाग्य समझना चाहिये और यदि न हो तो युवावस्था में इस बात का प्रयास करना चाहिये कि अपने हाथ हमेशा ही जगन्नाथ बने और धर्म, साहित्य, या मनोरंजन के नाम कोई हमारे मन को बांध न सके।

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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