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Sunday, February 26, 2012

चाणक्य नीति-स्वर्ग और नरक तो धरती पर ही मौजूद हैं (chankya neeti-swarga aur narak isee dharti par)

                   भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व में स्वर्ग नरक की अनेक तरह कल काल्पनिक धारणायें प्रचलित हैं।  ऐसा नहीं है कि स्वर्ग या नरक की स्थिति केवल मरने के बाद ही दिखाई देती है। अपने पास अगर ज्ञान हो तो इसी पृथ्वी पर स्वर्ग भोग जाता है। आजकल भौतिकवाद के चलते मनुष्यों की अनुभूतियों की शक्तियां कम हो गयी हैं। वह तुच्छ उपलब्धियों पर इतराते हैं तो थोड़ी परेशानियों में भारी तनाव उन पर छा जाता है। आजकल कहा भी जाता है कि इस संसार में कोई सुखी नहीं है। दरअसल लोग सुख का अर्थ नहीं जानते। सुख के साधनों के नाम अपने घर में ही कबाड़ जमा कर रहे हैं। संबंधों के नाम पर स्वार्थ की पूर्ति चाहते हैं। स्वार्थों के लिये संबंध बनाते और बिगाड़ते हैं। क्रोध को शक्ति, कटु वाणी को दृढ़ता और दुःख के नाम पर दूसरे के वैभव से ईर्ष्या पालकर मनुष्य स्वयं ही अपने दैहिक जीवन को नरक बना देता है। किसी को यह बात समझाना कठिन है कि वह अपने जीवन की स्थितियों के लिये स्वयं जिम्मेदार हैं। लोग भाग्यवादी इतने हैं कि अपने ही कर्म को भी उससे प्रेरित मानते है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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                                   अत्यन्तकोपः कटुका च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम्।
                                  नीचप्रसंङ्गा कुलहीनसेवा चिह्ननि देहे नरकास्थितानाम्।।
               ‘‘अत्यंत क्रोध करना अति कटु कठोर तथा कर्कश वाणी होना, निर्धनता, अपने ही बंधु बांधवों से बैर करना, नीचों की संगति तथा कुलहीन की सेवा करना यह सभी स्थितियां प्रथ्वी पर ही नरक भोगने का प्रमाण है।’’  
 गम्यते यदि मृगेन्द्र-मंदिर लभ्यते करिकपोलमौक्तिम्।
    जम्बुकाऽऽलयगते च प्राप्यते वत्स-पुच्छ-चर्म-खुडनम्।।
             ‘‘कोई मनुष्य यदि सिंह की गुफा में पहुंच जाये तो यह संभव है कि वहां हाथी के मस्तक का मोती मिल जाये पर अगर वह गीदड़ की गुफा में जायेगा तो वहां उसे बछड़े की पूंछ तथा गधे के चमड़ का टुकड़ा ही मिलता है।’’
                     हमें अपने जीवन को अगर आनंद से बिताना है तो अपने आचरण, विचार तथा व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए। कायर, कलुषित व बीमार मानसिकता वाले, व्यसनी तथा लालची लोगों से संबंध रखने से कभी हित नहीं होता है। ऐसे स्थानों पर जाना जहां तनाव के अलावा कुछ नही मिलता हो वर्जित करना ही श्रेयस्कर हैै। जिनका छवि खराब है उनसे मिलना अपने लिये ही संकट बुलाना है। इस संसार में ऐसे पाखंडी लोगों की कमी नहीं है जो अपना काम निकालने के लिये दयनीय चेहरा बना लेते हैं पर समय आने पर सांप की तरह फुंफकारने लगते हैं। इसलिये उत्साही, संघर्षशील तथा अध्यात्मिक रुचि वालों की संगत करना ही जीवन के लिये लाभप्रद है। अच्छे लोगों से संगत करने पर अपने विचार भी शुद्ध होते हैं तो मन के संकल्प भी दृढ़ होते हैंे जो आनंदमय जीवन की पहली और आखिरी शर्त है।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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