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Friday, July 01, 2011

पतंजलि योग साहित्य-समाधि में सारे क्लशों का नाश होता है (patanjali yog sahitya-samadhi mein sare kleshoh ka nash)

           योग साधना भारतीय अध्यात्म दर्शन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।हम जानते हैं कि हमारे हिमालयीन क्षेत्रों में अनेक ऐसे तपस्वी रहते हैं जो वहां से कभी नीचे या बाहर नहीं आते। अक्सर कुछ लोग उन पर आक्षेप करते हैं कि अगर वह वाकई तपस्वी हैं तो वह क्यों नहीं समाज का नेतृत्व करने के लिये बाहर आते। उन पर पर अकर्मण्यता का आरोप भी लगाया जाता है। इसके बावजूद उनके भक्त और शिष्य उनके पास जाते हैं। इनमें से कुछ ऋषि तो अपने भक्तों तथा शिष्यों की सेवा को भी स्वीकार नहीं करते और इसकी उनको आवश्यकता भी नहीं होती क्योंकि वह ज्ञानी महात्मा आहार विहार तथा प्रचार के लोभ में नहीं फंसते।
          भले ही हमारे देश के कुछ अज्ञानी लोग उन पर आक्षेप करें पर सच यह है कि ऐसे लोग महान योगी होने के साथ महान तत्वज्ञानी भी होते हैं। हम लोग अक्सर ज्ञान की चरम सीमा यह समझते हैं कि उसे दूसरों को सुनाया जाये या उसका नकदीकरण हो। यह अल्पज्ञान के साथ ही अहंकार का भी प्रमाण हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा भी है उनके ज्ञान का प्रचार केवल भक्तों में ही किया जाये जबकि हम देख रहे हैं कि व्यवसायिक प्रवचनकर्ता चाहे जहां उसे सुनाते रहते हैं। यह अलग बात है कि इसका प्रभाव कहीं परिलक्षित नहीं होता। दरअसल महाज्ञानी धर्ममेय समाधि में लीन रहते हैं जहां उनको मान पाने का लोभी नहीं होता। इस वजह से उनके सारे क्लेश भी समाप्त हो जाते हैं।
       पतंजलि योग में कहा गया है कि
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         प्रसंख्यानेऽप्यकुसीदस्य सर्वथा विवेक ख्यातेर्धर्ममेघः समाधिः।।
       ‘‘जिस योगी का तत्वज्ञान के महत्व में भी विरक्ति हो जाती है उसका विवेक और ज्ञान सर्वथा प्रकाशमान रहता है और उसे ही धर्ममेय समाधि कहा जाता है।
तत क्लेशकर्मनिवृत्तिः
         ‘‘उस समय उसके अंदर क्लेश और कर्मों का सर्वथा नाश हो जाता है।
        तद सर्वावरणमलापेतस्य ज्ञानस्यानन्त्याज्ज्ञेमल्पम्।।
      ‘उस समय उसके मन से सारे परदे और मल हट चुका होता है। ऐसा ज्ञान अनंत है इस कारण क्लेश पदार्थ कम हो जाते हैं।’
        देखा जाये तो हमारे अधिकतर संकट लोभ, लालच, तथा अहंकार की वजह से आते हैं। जब मनुष्य इससे विरक्त हो जाता है तब उसका जीवन शांति से बीतता है। ऐसा तभी संभव है कि जब कोई धर्ममेय समाधि में दक्षता प्राप्त कर लेता है।समाधि देह और मन के विकार रहित होने का सबसे बड़ा प्रतीक है।
लेखक एवं संपादक दीपक राज कुकरेजा भारतदीपग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep',Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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