समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, January 22, 2011

अक्षम और मूर्ख लोगों से दूर रहना ही बेहतर-हिन्दी अध्यात्मिक लेख (aksham aur murkhg logon se door rahe-hindi adhyamik lekh)

हमारे देश ही नहीं वरन् पूरे विश्व का वातावरण ऐसा हो गया है कि बड़े पदों पर बौने चरित्र के लोग विराजमान हो गये है।  लालचियों के पास धन आ गया है और यश मिल रहा है दुश्चरित्र लोगों को! ऐसे में सामान्य आदमी का मन भटकता है कि वह बुरा बने या बड़ों की चाटुकारिता कर अपना काम चलाये।  यही कारण है कि सामान्य लोग बड़े लोगों की चाटुकारिता में लग जाते हैं। कुछ लोग नाम और नाम दोनों पाते हैं पर सभी के भाग्य एक जैसे नहीं होते। अनेक लोगों को असफलता हाथ लगती है।
इस संसार में तीन प्रकार के लोग पाये जाते हैं-सात्विक, राजस और तामस! श्रेष्ठता का क्रम जैसे जैस नीचे जाता है वैसे ही गुणी लोगों की संख्या कम होती जाती है। कहने का अभिप्राय यह है कि तामस प्रवृत्ति की संख्या वाले लोग अधिक हैं। उनसे कम राजस तथा उनसे भी कम सात्विक होते हैं। धन का मद न आये ऐसे राजस और सात्विक तो देखने को भी नहीं मिलते। जिन लोगों को भगवान ने वाणी या जीभ दी है वह उससे केवल आत्मप्रवंचना या निंदा में नष्ट करते हैं। किसी को नीचा दिखाने में अधिकतर लोगों को मज़ा आता है। किसी की प्रशंसा कर उसे प्रसन्न करने वाले तो विरले ही होते हैं। इस संसार के वीभत्स सत्य को ज्ञानी जानते हैं इसलिये अपने कर्म में कभी अपना मन लिप्त नहीं करते।
पुण्यैर्मूलफलैस्तथा प्रणयिनीं वृत्तिं कुरुष्वाधुना
भूश्ययां नवपल्लवैरकृपणैरुत्तिष्ठ यावो वनम्।
क्षधद्राणामविवेकमूढ़मनसां यन्नश्वाराणां सदा
वित्तव्याधिविकार विह्व्लगिरां नामापि न श्रूयते।।
भर्तृहरि महाराज अपने प्रजाजनों से कहते हैं कि अब तुम लोग पवित्र फल फूलों खाकर जीवन यापन करो। सजे हुए बिस्तर छोड़कर प्रकृति की बनाई शय्या यानि धरती पर ही शयन करो। वृक्ष की छाल को ही वस्त्र बना लो लो। अब यहां से चले चलो क्योंकि वहां उन मूर्ख और संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों का नाम भी सुनाई नहीं देगा जो अपनी वाणी और संपत्ति से रोगी होने के कारण अपने वश में नहीं है।

 विलासिता  और अहंकार लिप्त इस संसार में में यह तो संभव नहीं है कि परिवार या अपने पेट पालने का दायित्व पूरा करने की बज़ाय वन में चले जायें, अलबत्ता अपने ऊपर नियंत्रण कर अपनी आवश्यकतायें सीमित करें और अनावश्यक लोगों से वार्तालाप न करें। उससे भी बड़ी बात यह कि परमार्थ का काम चुपचाप करें, क्योंकि उसका प्रचार करने पर लोग हंसी उड़ा सकते हैं। सन्यास का आशय जीवन का सामान्य व्यवहार त्यागना नहीं बल्कि उसमें मन के लिप्त न होने देने से हैं। अपनी आवश्यकतायें कम से कम करना भी श्रेयस्कर है ताकि हमें धन की कम से कम आवश्यकता पड़े। जहां तक हो सके अपने को स्वस्थ रखने का प्रयास करें ताकि दूसरे की सहायता की आवश्यकता न करे। इसके लिये योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान करना एक अच्छा उपाय है।
-------------
संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

Sunday, January 09, 2011

ज्ञान मद का भी काम करता है-हिन्दी चिंत्तन लेख (gyan aur mad-hindi chittan lekh)

ज्ञान मद का भी काम करता है। ऐसी बात केवल हमारे अध्यात्मिक दर्शन में भर्तृहरि महाराज जैसे लोग ही संदेश के रूप में दे सकते हैं। ज्ञान दो तरह का होता है एक जीवन तत्व का रहस्य तो दूसरा सांसरिक ज्ञान। जिन लोगों को तत्व ज्ञान है वह जीवन तत्व रहस्य को जान जाते हैं तब उनका जीवन सात्विकता की अग्रसर होता है और वही संत कहलाते हैं। उसी तरह जिनको यही तत्व ज्ञान-जो कि केवल सांसरिकता तक ही सीमित है-आक्रामक भी बना देता है। यह संसार और जीवन नश्वर है यह सोच होने पर अनेक लोग इस जीवन का जमकर उपभोग करना चाहते हैं। इसलिये वह अच्छे और बुरे के भाव से परे होकर ऐसे काम करने लगते हैं। जैसा कि सभी लोग जानते हैं कि रावण एक विद्वान था पर उसने यह मंतव्य धारण कर लिया था कि वह जीवन अपने अनुसार ही व्यतीत करेगा तब अपराध के रास्ते पर ही चला और भगवान श्री राम के बाणों से वध को प्राप्त हुआ।
हालांकि ऐसे अपवाद स्वरूप ही होता है क्योंकि तत्वज्ञान जीवन के प्रति ऐसा आत्मविश्वास देता है जिसे मनुष्य में सकारात्मकता का भाव आने के साथ ही आशाओं को भी संचार होता है। आज नहीं तो इस मायावी संसार में लक्ष्मी का चक्कर अपने घर भी लगेगा यही सोचकर ज्ञानी निष्काम भाव से अपने काम में लगे रहते हैं। वैसे अगर हम देखें तो आज भी अनेक लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि इस जीवन के बाद उनका क्या होगा इसलिये जो करना है वह अभी करेंगे। युवा पीढ़ी में यही सोचकर अंधाधुंध आनंद के लिये दौड़ती रहती है कि अगर यह अवस्था बीत गयी तो फिर तो कुछ लाभ नहीं है। विवाहोपरांत तो बस घर के झंझट ही उनका पूरा जीवन लील लेंगे। देखा जाये तो यह भी एक तरह से यह सीमित तत्व ज्ञान है जो जीवन में आक्रामक बना देता है। इस बारे में भर्तृहरि महाराज कहते हैं कि-
ज्ञानं सतां मानमदादिनाशनं केषांचिदेतन्मदमानकारणम्
स्थानं विविक्तं यमिनां विमुक्तये कामातुराणामपिकामकरणम्।
"ज्ञान संतों के लिये मान और मद का काम करता है। उसी तरह वही ज्ञान दुष्टों के लिये अहंकार तो योगियों के लिये मोक्ष का कारण बनता है। इसके विपरीत कामी पुरुषों के काम को भी बढ़ा देता है।"
इसके विपरीत जो लोग अध्यात्मिक ज्ञान का पूर्ण अर्थ समझते हैं वह एकांत में बैठकर जीवन और उसके रहस्य का विचार करते हैं। इस सांसरिक जीवन के उतार चढ़ाव के उतार चढ़ाव पर दृष्टि रखते हैं। वह इस चिंतन से पैदा ज्ञान को धारण करते हुए जीवन में तनाव से मुक्ति पाते हैं। अगर अपने अंदर थोड़ा बहुत अध्यात्मिक ज्ञान है तो उस पर अहंकार नहीं करना चाहिये क्योंकि सत्य का कोई अंत नहीं है।  ज्ञान बघारने का  नहीं बल्कि धारण करने का विषय है। जितना अध्ययन करेंगे उतना ही मन शुद्ध होगा। बाहर बघारने से उसका क्षय होता है क्योंकि तब अपने ज्ञानी होने का अहंकार मन में आता है जो कि सहज जीवन का एक बहुत बड़ा शत्रु है।
----------------------------------------
संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

Saturday, January 08, 2011

योग्य लोग किसी की परवाह नहीं करते-हिन्दी चिंतन आलेख (yogya log parvah nahin karte-hindu chitan lekh)

इस संसार में कलुषित वाणी बोलने वालों की कमी नहीं है। उससे भी अधिक संख्या तो उन लोगों की है जो दूसरे के दुःख पर हंसते हैं। किसी की परेशानी आने पर उसका मजाक उड़ाते हैं। अगर हम देखें तो आम इंसान सबसे ज्यादा इसी बात पर चिंतित रहते हैं कि कहीं उनके पास दुःख न आये। इसलिये नहीं कि वह उससे लड़ नहीं सकते बल्कि कहीं अपने ही लोग उनका मजाक न उड़ायें यही चिंता उनको खाये जाती है।  इस विषय पर नीति विशारद विदुर कहते हैं कि
परश्चेदेनभिविध्येत वाणीमुंशं सुतीक्ष्यौरनलार्कदीप्तैः।
स विध्यमानोऽप्यतिदहृामानो विद्यात् कविः सुकृतं में दधाति।।
"विद्वान मनुष्य अन्य व्यक्ति के मुख से अपने प्रति वाग्बाण तथा कटुशब्दों से चोट पहुंचाने पर वेदना होने के बावजूद यह सोचकर मौन हो जाते हैं कि वह मेरे ही पुण्यों को पुष्ट कर रहा है।
यदि सन्तं सेवति यद्यसन्तं तपस्विनं यदि वा स्तेनमेव।"
वासो तथा रंगवशं प्रवानि तथा स तेषां वशमभ्युवैति।।
जिस तरह किसी कपड़े को रंगा जाये तो वह भी उसी रंग का हो जाता है। उसी तरह सज्जन पुरुष दुष्ट से संगत करने पर उस जैसा प्रभाव हो जाता है।
तत्वज्ञानी तथा जीवन रहस्य को समझने वाले विद्वान इस प्रकार के भय से मुक्त होते हैं। वह जानते हैं कि मनुष्य मन की यह स्थिति यह है कि वह अपने दुःख से कम दुखी बल्कि दूसरे के सुख से अधिक सुखी होता है। लोभ, लालच तथा अहंकार से भरा मनुष्य कभी संतुष्ट या सुखी नहीं रह सकता इसलिये वह दूसरे के दुःख तथा क्षोभ में अपने लिये संतोष ढूंढता है। इतना ही नहीं अनेक लोग तो दूसरों की रचनात्मक प्रवृत्तियों का भी उपहास उड़ाते हैं।
यही कारण है कि विद्वान तथा समझदार लोग दूसरों की आलोचना की परवाह तथा प्रशंसा का लोभ त्यागकर अपने सत्य पथ पर बढ़ते जाते हैं। उनको किसीके मन अपमान कि चिंता नहीं होती और वह अपने कर्म में लीन रहते हैं।
----------------
संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

Thursday, December 09, 2010

मनोरंजन के नाम पर मानसिक विलासिता से बचें-हिन्दी लेख (manoranjan ke nam par vilasita-hindi lekh)

न्यूजीलैंड को भारत ने लगातार तीसरा एकदिवसीय क्रिकेट मैच में क्या हरा दिया कि जैसे भारतीय प्रचार माध्यमों की लॉटरी लग गयी। बस गाये जा रहा है कि
‘‘उस खिलाड़ी के कंधों में आई ताकत से सब भौचक्के।’
‘उसकी स्पिन में जादू कहां से आया।’
‘अब वह धनी बन गया।’ आदि आदि।
एक मज़े की बात यह रहती है कि अगर आप कभी धंटे के मध्य-यानि साढ़े छह, सात या आठ बजे-घर पहुंच कर टीवी खोलें तो आपको एक जैसे ही प्रसारण मिलेंगे। क्रिकेट मैच पर चर्चा, किसी टीवी कार्यक्रम के (कु)पात्र का बखान या किसी बड़ी हस्ती का जन्म दिन! ऐसे में यह शक होता है कि सभी चैनल अलग अलग हैं। बल्कि ऐसा लगता है कि सभी टीवी चैनल किसी एक इशारे पर काम करते हैं। तय बात है कि विज्ञापन तो सभी कंपनियां देती हैं पर उनका निर्माण तथा प्रसारण कुछ बड़ी संस्थाओं को पास होता है जो शायद इन चैनलों को बता देती हैं कि उनके मॉडल एक ही समय सभी चैनल पर दिखाये जाने चाहिए ताकि आम दर्शक इस चैनल से उस चैनल पर जाये पर रहे हमारी पकड़ में। अनेक लोग हिन्दी अंतर्जाल पर ऐसे हैं जो आये दिन इन प्रचार माध्यमों की कुछ कथित शख्सियतों पर आक्षेप करते हुए यह दुआ करते हैं कि उनको अक्ल आये। वह गलत फहमी में हैं। दरअसल कथित रूप से जो चैनल पत्रकार हैं वह ऐसे प्रारूप में काम रहे हैं जो राज्य, अर्थ तथा कला के क्षेत्र में बरसों से निर्धारित कर दिया गया है। अब उसमें बदलाव इसलिये नहीं आ पा रहा क्योंकि उसके लिये जिस अध्यात्म ज्ञान या चिंतन की जरूरत है जिससे कोई जुड़ना नहंी चाहता। कुछ नया करने का उनमें आत्मविश्वास नहीं है। आधुनिक शिक्षा से सुसज्तित जो शिखर पुरुष अपनी जगह जमे हैं उनमें अध्यात्मिक शक्ति का अभाव है। उल्टे वह भारतीय अध्यात्म ज्ञान को हेय बताकर वाहवाही लूटते हैं।
भारत का समूचा प्रचार तंत्र एक तरह से हमेशा ही पूंजीपतियों और दलालों के हाथ में रहा है। जब रेडियो और टीवी पर केवल सरकारी एकाधिकार था तब समाचार पत्र पत्रिकाओं भी वही चलती थीं जो पूंजपतियों के हाथों में थी। अनेक संघर्षशील लोगों ने छोटे अखबार चलाने का प्रयास किया पर आर्थिक समर्थन के अभाव में नाकाम रहे। बड़े समाचार पत्र पत्रिकाओं शिखर पदों भी काम भी वही लोग करते जो लिखने पढ़ने के साथ ही मालिकों के अन्य व्यवसायिक कामों में भी सहयोग कर सकते थे। अधिकतर प्रसिद्ध समाचार पत्र पत्रिकाओं के मालिक अपने प्रकाशनों सहारे ही अन्य व्यवसायिक भी करते हैं। तय बात है उनको प्रकाशन उद्योग के कारण रुतवे का लाभ मिलता है। अब टीवी और रेडियो क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी है पर उनके कर्ताधर्ता भी पूंजीपति हैं। ऐसे में कम से कम हिन्दी का प्रचारतंत्र पूरी तरह से राज्य तथा पूंजी के तयशुदा प्रारूप में काम करता रहेगा। इसमें बदलाव संभव नहीं है।
अभी 2-जी स्पैक्ट्रम घोटाले में यह बात खुलकर सामने आ गयी है कि राजकीय पदों पर बैठे तथा पूंजीक्षेत्र के शिखर पुरुषों के बीच दलाली का काम कथित रूप से पत्रकारों ने किया है। यह बात चौंकाती नहीं है क्योंकि इसके अनुमान तो पहले से ही थे। ऐसे में जो लोग इन प्रचार माध्यमों में सुधार की आशा करते हैं उनको निराश होना पड़ेगा। आखिर यह कैसे संभव है कि टीवी या समाचार पत्र पत्रिकाओं के संपादक अपने पूंजीपतियों के बरसों पूर्व तय मार्गदर्शक सिद्धांतों का उल्लंघन कर जायें। पूंजीपतियों की स्थिति यह है कि जहां से धन मिलता है वहां अपने संबंध अच्छा बनाता है। यही कारण है कि जब हम देश के आतंकवाद के लिये पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हैं तब खाड़ी देशों के उसमें सहयोग को अनदेखा करते देते हैं क्योंकि वहां भारतीय पूंजीपतियों के आर्थिक संपर्क हैं। ऐसे एक नहीं अनेक प्रमाण हैं कि भले ही खाड़ी देश पाकिस्तान को पसंद करें या न करें पर भारत विरोध के लिये वह उनका एक बहुत बड़ा हथियार है। नंगा भूखा पाकिस्तान भारत में आतंकवाद का प्रायोजन जिस पैसे पर करता है उसका स्त्रोत बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सभी को पता है। स्थिति यह है कि भारतीय टीवी चैनल और फिल्मों में पाकिस्तानियों को प्रवेश भी मिल जाता है और यकीनन इसके लिये कहीं न कहीं भारत के बाहर के प्रायोजक पाकिस्तानी आकाओं को प्रसन्न करते हैं।
कुछ बुद्धिजीवी और कलाकार तो अपने पाकिस्तान प्रेम के कारण ही मशहूर हैं। वह इसलिये नहीं कि उसकी कोई उनसे वास्तविक हमदर्दी है बल्कि उनके आर्थिक आका उनको बाध्य करते हैं या संभव है उनको प्रसन्न करने के लिये वह ऐसा करते हों। मज़े की बात यह है कि ऐसे लोग सार्वजनिक आलोचनाओं को भी पी जाते हैं। उनको पता है कि देश में प्रचारतंत्र का सक्रिय एक तबका कहीं न कहीं उनके साथ है जिनके आर्थिक स्त्रोत उन जैसे ही हैं।
अभी हाल ही में वाराणसी में हुए विस्फोट में दुबई और शारजाह में रह रहे आतंकवादियों का नाम आ रहा है, पर क्या किसी चैनल ने इन देशों के विरुद्ध एक शब्द भी कहा है? विकीलीक्स ने बताया कि एक पाकिस्तानी आतंकवादी सऊदी अरब से धर्म के नाम पर पैसा लेकर आतंकवादियों पर खर्च करता है? क्या किसी चैनल ने सऊदी अरब पर कोई आक्षेप किया। नहीं, क्योंकि पूंजीपतियों के इन खाड़ी देशों में आर्थिक संपर्क हैं और प्रचार तंत्र अंततः उनके ही हाथों में हैं। उनको नाराज नहीं करना है, इस बात की परवाह कोई शुद्ध पत्रकार नहीं करेगा पर दलाल पत्रकार कभी भी पाकिस्तान से आगे अपनी बात नहीं करेंगे। मुश्किल यह है कि पूंजी, विद्वान समाज, राज्य तंत्र में कुछ ऐसे लोग हैं जो शुद्ध पत्रकारों को भाव नहीं देते। उनको लगता है कि कहीं उनके आर्थिक पिता कहीं नाराज न हो जायें। सभी चैनल और अखबारों में अच्छे पत्रकार हैं। अपना काम कर रहे हैं पर जब शिखर पर बैठे पत्रकारों के नाम आये तो यह प्रश्न उठता ही है कि क्या इस देश में विदेशी विचाराधारा, संस्कृति और शिक्षा के प्रचार में क्या ऐसे ही लोग हैं जिनका उद्देश्य अपना हित साधना है न कि समाज में चेतना लाना। जब शिखर पर बैठे लोग ऐसे हों तो दूसरी पंक्ति के कर्मियों से स्वतंत्रता से काम करने की आशा करना बेकार है। क्रिकेट, टीवी कार्यक्रमों के अंशों तथा फूहड़ मज़ाक के सहारे चल रहे भारतीय चैनलों से यह आशा करना भी बेकार है कि वह अपना रास्ता बदलेंगे क्योंकि उनके आर्थिक आधार फिलहाल तो बदलने से ही रहे। यही कारण है कि वह हिन्दी की आड़ में अंग्रेजी, संस्कृति की आड़ में विदेशी कुचक्र तथा शिक्षा के नाम पर नंगापन परोसते जा रहे हैं। हम उनसे कोई आशा नहीं करते इसलिये लोगों से यही कहते हैं कि अपने मनोरंजन की भूख को कम करो। नंगे दृश्य या गाली सुनकर आनंद उठाने से अच्छा है तो स्वयं ही बैठकर कोई गाना गुनागुनाने लगो, या बिना कारण पार्क में टहलने चले जाओ। किसी भी हालत में मनोरंजन के नाम पर मानसिक विलासिता से बचो। सुबह योग साधना करें। दिन में ध्यान लगायें और शाम को कोई अध्यात्मिक पत्रिका पढ़ें। आवश्यक न हो तो गाड़ी की बजाय साइकिल की सवारी भी करो ताकि अपनी सक्रियता का आनंद मिले। तब दूसरे की सक्रियता या एक्शन में आनंद उठाने की इच्छा जाती रहती है। अपना चिंत्तन  करो ताकि दूसरे की राय पर विचार कर सको। जब किसी का अंधानुकरण नहीं करोगे तो कोई अंधेर में रहना सीख लोगे तो कोई  चिराग बेचने भी नहीं आयेगा।
______________________________

संकलक एवं संपादक-दीपक    'भारतदीप', ग्वालियर 
author aur writter-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

४.हिन्दी पत्रिका 
५.ईपत्रिका
६.दीपकबापू कहिन
७.शब्द पत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, December 04, 2010

हिंदू धार्मिक विचार-ज्ञानी लोग खाने के लिए खानदान का नाम नहीं लेते

मनु महाराज के अनुसार 
------------------------------
न भोजनार्थ स्वे विप्र कुलगोत्रे निवेदयेत्।
भोजनार्थ हि ते शंसन्न्वान्ताशीत्युच्यते बुधैः।।
हिन्दी में भावार्थ-
किसी भी ज्ञानी आदमी को कहीं से खाना प्राप्त करने के लिये अपने कुल या जाति की सहायता नहीं लेना चाहिए। ऐसा करने वाला व्यक्ति वान्ताशी यानि उल्टी किए गऐ भोजन को खाने वाला माना जाता है।

उपासते ये गृहस्थाः परपाकमबुद्धयः।
तेन ते प्रेत्य पशुतां व्रजन्त्यन्नांदिदायिजः।।
हिन्दी में भावार्थ-
मनु महाराज के अनुसार जो निर्बुद्धि मनुष्य अच्छे खाने की लालच में दूसरे स्थान पर जाकर आतिथ्य सत्कार पाने का प्रयास करता है वह अगले जन्म में अन्न खिलाने वाले मनुष्यों के घर में पशु का रूप धारण कर रहता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य की जीभ स्वाद के लालायित रहती है। जो ज्ञानी लोग भोजन को केवल पेट भरने के लिये मानते हैं वह तो हर प्रकार के भोजन में संतुष्ट हो जाते हैं पर पेट भरना ही जीवन मानते हैं वह अच्छे खाने के लिये इधर उधर मुंह मारते हैं। जीवन के लिये भोजन आवश्यक है पर कुछ लोग तो भोजन को ही जीवन मानकर उसके पीछे फिरते हैं। ऐसे लोग हमेशा भूखे रहते हैं और अपने घर के खाने को विष समझकर इधर उधर ताकते रहते हैं। एसे लोगों की बुद्धि अत्यंत निकृष्ट होती है।
भोजन हमें इस उद्देश्य से ग्रहण करना चाहिये कि उससे हमारे शरीर को नियमित ऊर्जा मिलती रहे। भोजन में ऐसे पदार्थ ग्रहण करना चाहिए जो भले ही स्वादिष्ट न हों पर सुपाच्य होना चाहिए। जीभ के स्वाद के चक्कर में अज्ञानी लोग ऐसे पदार्थ ग्रहण करते हैं जो पेट के लिए हानिकारक हैं। आजकल हम देख भी रहे है कि स्वादिष्ट पदार्थों के सेवन से बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है। इसलिये सुपाच्य पदार्थों का ज्ञान प्राप्त कर ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
उसी तरह भोजन प्राप्त करने के लिऐ कभी अपने कुल या गौत्र का नहीं लेकर सदाशयी गृहस्थ की सद्भावना पर ही निर्भर रहना चाहिए। जो लोग अपने भोजन के लिये कुल या जाति का आसरा लेते हैं वह ऐसे ही होते हैं जैसे कि उल्टी का भोजन करने वाले पशु होते हैं।  वैसे  भी कहा जाता है कि जिसने पेट दिया है उसने उसके लिए भोजन भी बना दिया है।

--------------------
संकलक एवं संपादक-दीपक  राज कुकरेजा  'भारतदीप', ग्वालियर 
author aur writter-Deepak raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

Sunday, November 21, 2010

मांस की बरफी-हिन्दी व्यंग्य कविता (maans ki barfi-hindi vyangya kavita)

बेईमानी और भ्रष्टाचार के खिलाफ
दिखावे की जंग वह लड़ रहे हैं,
पर उनकी तलवारें म्यान में रखी हैं।
कमीज की आस्तीनें ऊपर वह कर रहे हैंे,
जैसे जीत की राह में बढ़ रहे हैं,
हकीकत नहीं है उनका यह नाटक
सभी के मुंह लग गया है खून
दूसरे के मांस की बरफी सभी ने चखी है।
------------

संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

Friday, November 05, 2010

श्रीगुरुग्रंथ साहिब-अपने को पीर प्रचारित करने वालों के चरण स्पर्श न करें (shri guru granth sahib-apne ko peer kahane valon ke charan sparsh na karen)

‘गुरु पीरु सदाए मंगण जाइ।
त के मूलि न लगीअै पाई।।’
हिन्दी में भावार्थ-
श्री गुरुग्रंथ साहिब की वाणी के अनुसार कुछ लोग अपने को गुरु और पीर कहते हुए अपने भक्तों से धन आदि की याचना करते हैं ऐसे लोगों के पांव कभी नहीं छूना चाहिये।

‘पर का बुरा न राखहु चीत।
तम कउ दुखु नहीं भाई मीत।
हिन्दी में भावार्थ-
दूसरे के अहित का विचार मन में भी नहीं रखना चाहिये। दूसरे के हित का भाव रखने वाले मनुष्य के पास कभी दुःख नहीं फटकता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- महान संत भगवान श्री गुरुनानक देव जी ने अपने समय में देश में व्याप्त अंधविश्वास और रूढ़िवादिता पर जमकर प्रहार कर केवल अध्यात्मिक ज्ञान की स्थापना का प्रयास किया। उनके समकालीन तथा उनके बाद भी अनेक संत और कवियों ने धर्म के नाम पर पाखंड का जमकर प्रतिकार किया पर दुर्भाग्यवश इसके बावजूद भी हमारे देश में अंधविश्वास का अब भी बोलाबाला है। इतना ही अनेक संत कथित रूप से गुरु या पीर बनकर अपने भक्तों का दोहन करते हैं। हैरानी की बात यह है कि आजकल उनके जाल में अनपढ़ या ग्रामीण परिवेश के काम बल्कि शिक्षित लोग अधिक फंसते हैं। आज से सौ वर्ष पूर्व तक तो अंधविश्वास तथा रूढ़िवादिता के लिये देश की अशिक्षा तथा गरीबी को बताया जाता था मगर आजकल तो धनी और शिक्षित वर्ग अधिक जाल में फंसता है और हम जिनको अनपढ़, अनगढ़ और गंवार कहते हैं वही समझदार दिखते हैं।
आधुनिक शिक्षा में अध्यात्मिक ज्ञान को स्थान नहीं मिलता। लोग तकनीकी तथा उच्च शिक्षा को सर्वोपरि मानते हैं पर मन की शांति और अध्यात्मिक ज्ञान के लिये वह ऐसे अनेक ढोंगियों महात्माओं और संतों के जाल में फंस जाते हैं जो खुलेआम पैसा मांगने के साथ ही धर्म का खुलेआम व्यापार करते हैं। आश्चर्य तब होता है जब उच्च शिक्षा प्राप्त और धनीवर्ग उनके चरण स्पर्श करने के लिये भागता नज़र आता है।
जीवन में खुश रहने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि सबके हित की कामना करें। किसी के लिये बुरा विचार मन में न लायें। कभी कभी तो यह भी होता है कि जैसा अब दूसरे के लिये बुरा सोचते हैं वैसा ही अपने साथ ही हो जाता है। अतः सभी के लिये अच्छा सोचा जाये ताकि अपने साथ भी अच्छा हो।
आजकल अनेक ऐसे गुरु हैं जो खुलेआम अपने शिष्यों से आर्थिक भेंट मांगते हैं। इनमें कुछ तो ऐसे हैं जो धन से ही धर्म की रक्षा का नारा देकर भक्तों के अंदर दान की भावना पैदा कर उसका दोहन करते हैं। सच बात तो यह है कि आदमी धर्म की रक्षा तभी कर सकता है जब उसके पास ज्ञान हो और उसके लिये जरूरी है कि स्वयं ही धार्मिक पुस्तको का एकांत में चिंतन कर ज्ञान प्राप्त किया किये जाये। भेंट या दक्षिण मांगने वाले गुरु कुछ देर तक हृदय में मनारंजन का भाव पैदा कर सकते हैं पर उससे मनुष्य के मन में स्थिरता नहीं आती। जब मन अस्थिर होता है तब मनुष्य अपने ही कार्यों से ताने में फंसता जाता है। इतना ही नहीं तब वह दूसरों के अहित की कामना करता है जो कि अंतत: उसके लिए ही कष्टदायक होता है।
-----------------
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें