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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, February 14, 2016

भारतीय समाज अब भी चेतनावान है (bhartiy samaj ab bhi chentawan hai)

              जवाहरलालनेहरुविश्वविद्यालय में हुए देशविरोधी प्रदर्शनों से एक बात साफ हो गयी है कि प्रगति व जनवादी विचारधारा के ध्वजवाहक भयानक रूप से कुंठित हैं। प्रगतिशील  व जनवादी विचारधारा के यह नये जमूरे देश में वर्तमान प्रबंध व्यवस्था में शामिल विपरीत दृष्टिकोण वाले लोगों को विरोधी नहीं शत्रु मान रहे है। इनकी कुंठा इतनी भयानक है कि आतंकवादी उन्हें सेनानी और आत्मघाती शहीद लगते हैं। वह अहंकार और अज्ञान के ऐसे वैचारिक अंधेरे में जी रहे हैं जिससे उनका निकलना मुश्किल है।
                        अध्यात्मिक विचाराधारा होने के कारण हमें प्रगतिशील व जनवादी विचारकों के चिंत्तन में कोई आकर्षण नहीं दिखता पर शैक्षणिक संस्थाओं में इनका  प्रभाव अब भी जबरदस्त है जबकि वह  स्वयं  भयानक अज्ञान के अंधेरे में विराजमान लगते हैं। लोकतंत्र सिद्धांतों के अनुसार वर्तमान प्रबंध व्यवस्था का विरोध करने की सभी को आजादी है पर इस आड़ में अपने ही देश  विरोध करना पागलपन नहीं अपराध है यह बात उन्हें समझना होगी।
             एक ऐसे विश्वविद्यालय में जो जनता के पैसे से चल रहा है वहां शिक्षा लेते हुए भारत की बर्बादी देखने की चाहत देखने वालों को कैसे समाज बर्दाश्त करे जब उस पर वैसे ही असहिष्णु होने का आरोप लग रहा हो। देशविरोधी नारे तथा आतंकी की फांसी का विरोध करने के कार्यक्रम को वह समाज कैसे बर्दाश्त करेगा जिसे असहिष्णुता कहकर निर्लज्ज कर दिया गया है। सच बात तो यह है कि पिछले दिनों जिस तरह असहिष्णुता का आरोप लगाकर जिस तरह पूरे भारतीय समाज को वैश्विक स्तर पर बदनाम किया गया है उससे यह डर समाप्त हो गया है| अब लोग सोचते हैं  कि इससे ज्यादा बदनामी तो हो नहीं सकती।  इसलिये जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में सक्रिय कथित क्रांतिकारियों को अब ज्यादा उम्मीद नहीं रखना चाहिये। उनके समर्थक या मार्गदर्शक बुद्धिजीवी यह बात समझ लें। वह कह रहे हैं कि जेएनयू का मसला देश में दक्षिणपंथियों के विरुद्ध जायेगा, यह भी तो सोचें कि पूरा भारतीय समाज चेतनावान है और तमाम वैचारिक हमलों के बावजूद वहा प्राचीन तत्वों से जुड़ा है। सीधी बात कहें तो समाज में दक्षिणपंथियों की जड़ें प्रगतिशील और जनवादियों से कहीं जयादा गहरी हैं। संभव है यह समाज  अपने अपमान का प्रतिकार करने के लिये दक्षिणपंथियों का अधिक पुरजोर ढग से साथ देने लगें।
     दूसरा तथ्य यह भी है कि  भारत व हिन्दू धर्म के विरुद्ध जाकर इस देश में कोई क्रांति नहीं हो सकती यह बात प्रगति व जनवादी विद्वानों को समझ लेना चाहिये। जहां तक भारतीय समाज का सवाल है उसे असहिष्णु कहकर वैसे ही बदनाम कर दिया तो वह देश व धर्म विरोधियों से क्यों सहानुभूति दिखायेगा? सच बात तो यह है कि अभी तक राजकीय संस्थाओं से प्रगतिशील व जनवादियों को जो प्रश्रय मिल रहा था वह समाप्त हो रहा है जिससे निराशा होकर प्रचार पाने के लिये वह अनेक तरह की नाटक बाजी कर रहे हैं यह उसी का हिस्सा है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

2 comments:

Dhamo said...

पाकिस्तान की ओर से कश्मीरी आवाम को उकसाना' अब आम बात मानी जाती है । वर्षों से पाक खूफिया तंत्र अपने महत्तम प्रयास कर चुका है, जितनी नाकाम कोशिशे पाकिस्तान ने कश्मीर को लेकर की है' उससे यह फलित हुआ है कि, अब उसे दूसरे प्लेटफार्म की तलाश है, अधिकतर' नरेंद्र दामोदरदास की सरकार जब से तख्ता नशीन हुई है तबसे. ..,
इसकी एक वजह यह भी है कि, नमो सरकार के सत्ता मे आने के बाद' पाकिस्तानी पैरोकारों को लगने लगा था कि, मुस्लिम विरोधी चेहरा माने जाने वाले मोदी के खिलाफ कश्मीर मे काफी कामयाबी मिलेगी, किन्तु सारा खेल मेहबूबा मुफती ने बिगाड के रख दिया, कट्टर कश्मीर वादी मानेजाने वाली मेहबूबा ने' कुछ शर्तों के साथ नरेंद्र मोदी की केन्द्र सरकार का दामन थाम लिया और इसके साथ ही सरकार मे साझेदारी वाले' हिन्दुत्व परस्त जम्मू के विधायक' सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो भूमिका निभाने के हकदार हो गए....., साथ ही पाक डिप्लोमैट को धूल छानने की नौबत आई।

अब पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के पास दो ही रास्ते बचे, जो एक नेपाल के रास्ते से होकर गुजरने वाला माओवाद और' दूसरा भारतीय समाज का जातिवाद ..., रही बात माओवाद फेईम नक्सलवाद की , तो उसे एक करारा जवाब बर्मा बोर्डर पर मिल चुका था, और नेपाल खुद अपनी समस्याओ मे उलझा हुआ था .... अतः पाक खुफिया को जातिगत भेदभाव के मुद्दे पर ही पसंदगी उतारनी थी।

यह मौका रोहित की खुदकुशी मे ही दिखने लगा ....कुछ शूरूआत भी हुई कि एक और घटना घट गई' जो पाक और चीन की खुफिया एजेंसीयों के लिए प्लेटफार्म साबित हुई, वह थी' जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी मे "पाकिस्तान जिंदाबाद" के नारेबाजी की घटना .....!!

यहीं से शुरू हुआ मामला पीछले पांच दिनों मे' जिस हद तक और जिस तरह विस्तृत हुआ' उससे कोई भी सीधा सादा अनुमान लगा सकता है कि, किसी न किसी का डोरी संचालन तो हो ही रहा है ...., सरकारी जांच एजेंसिया भी अब इस बात को लेकर काफी हद तक गंभीरता दिखा रही है ....,

अब इस की वजह भी तलाशते है,
JNU भले ही उग्रवाद का अड्डा नां हो' किन्तु कोई ना कोई तो उसमे छह्म वेशी है जो , जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी की उदार विचारधारा को' एक देश विरोधी अभियान मे पलटना चाहता है ...?? अब यह संदेह उस राह की ओर इशारा करता है, जो राह रिहाई मंच ने अपनाई हुई है। रिहाई मंच सीधे तौर पर - मोदी नीतियों का आलोचक और संघ समर्थित ABVP का घुर विरोधी है, किन्तु बात यहां पर खतम नहीं होती' बल्कि शुरू होती है। रिहाई मंच जो आरोप लगा रहा है' उसमे उनका दावा है कि, नारेबाजी ABVP का करवाया हुआ कृत्य है ...., जबकि सीधासा लाॅजिक यह कहता है कि, वंदेमातरम और हर बात पर भारत माता की जय बोलने वाले ABVP का कोई भी व्यक्ति' पाकिस्तान जिंदाबाद क्यों कहेगा ...??

अब हो सकता है कि, रिहाई मंच अपनी बहुविध सम्यक दृष्टि से सही भी हों, लेकिन पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा किसी न किसी ने तो लगाया ही है ...., प्रश्न यह उठता है कि, माना कि' कोई संगठन उदारवाद का पक्षधर हो और कोई कट्टरपंथ का, किन्तु वह देश विरोधी नारेबाजी करें या फिर किसी देशद्रोही का गुणगान करें' यह कौनसी उदारता या समझदारी की बात हुई ... !!?? कुल मिलाकर रिहाई मंच की राह' राष्ट्रवाद की पटरी पर तो नहीं दिखती है, जिस संदेह से बात फैली है, उसी को आगे धर कर यह कहा जा सकता है कि, रिहाई मंच और ABVP ' दोनों और दुश्मन देश के जासूस बैठे हो ..., और हम सब जानते ही है कि, जासूसों की मंडलीयाँ नही होती, वो किसी भी रूप मे, कहीं भी हो सकता है ...., होने को तो कुछ भी हो सकता है .... ' तो JNU उस दायरे से बाहर हो, यह ताल ठोक कर कौन कह सकता है ...?????

Dhamo said...

तथाकथित बुद्धिजीवी समुदाय द्वारा राष्ट्रहित के उद्देश्य हेतु सकारात्मक-नकारात्मक का भेद, योग्य-अयोग्य का भेद भुल कर जो हथकंडे अपनाये जाते है उसे सहमत ना हो कर भी मौन है जो समुदाय वो सीर्फ #राष्ट्कारण

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