आज पूरे देश में महाशिवरात्रि का
पर्व बड़े उल्लास से मनाया जा रहा है।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में भगवान शिव की अनेक लीलायें वर्णित हैं। श्रीमद्भागवत गीता में ब्रह्म के तीन रूप मान
गये हैं-ब्रह्मा जन्म, विष्णु धारण-पालन तथा शिव या रुद्र सहंार के
प्रतीक माने गये हैं। हर मनुष्य में
मृत्यु या संहार का भय रहता ही है इसलिये रुद्र या शिव के प्रति भी अनेक लोग अपनी
श्रद्धा इस आशा से प्रकट करते हैं कि वह हमेशा प्र्रसन्न रहे। वैसे भी उन्हें अत्यंत भोला माना जाता है जो
नाम स्मरण से कृपा करने वाले हैं।
धारणा तथा पालन के रूप भगवान विष्णु के अनेक अवतार माने जाते हैं पर भगवान
शिव का एक ही रूप रहां है। यह अलग बात है कि हमारे यहां कथित अनेक बाबा उनके अवतार
होने का दावा करते हैं। सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात यह कि हमने कहीं भी यह नहीं पढ़ा
कि भगवान शिवजी भांग या नशे का सेवन करते थे जबकि देखा यह जाता है कि अनेक व्यसनी
लोग तंबाकू, शराब,
भांग, अफीम या मादक द्रव्य
पदार्थों का सेवन करते हुए भगवान शिव का संदर्भ मजाक में देकर अपने को सही साबित
करने का प्रयास करते हैं। इतना ही नहीं
कुछ लोग मादक पदार्थों के सेवन मदहोश होकर ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे कि कोई
विशिष्ट व्यक्तित्व के स्वामी हों। पतंजलि
योग साहित्य में औषधि से समाधि की बात कही गयी है यह सत्य है पर उसे कोई श्रेष्ठ
नहीं कहा गया है। श्रीमद्भागवत गीता और
पतंजलि योग में किसी वस्तु, विषय या व्यक्ति को अच्छा या बुरा नहीं कहा गया
है। इनमें तो इतना बताया गया है कि किसी भी कर्म की प्रकृत्ति के अनुसार परिणाम
होता है, तय तो यह हमें करना है कि वह हमारे अनुकूल है या नहीं। औषधियों का निंरतर सेवन दैहिक, मानसिक और वैचारिक से विकृतियां लाता है यह अंतिम सत्य है। इसलिये व्यसनी धर्म के ठेकेदारों से परे ही
रहना चाहिये।
ब्रह्मा जन्म, विष्णु कर्म तथा शिव मोक्ष के रूप हैं। हम प्रतिदिन इनके प्रभाव में रहते हैं। प्रातः धर्म, दोपहर धर्म, सांय काम या मनोरंजन तथा रात्रि मोक्ष के लिये बनी है। अगर हम यह चाहते हैं कि रात्रि को निद्रा सहजता
से आये तो यह आवश्यक है कि हम पूरे दिन ऐसे काम करें जो हमारे अनुकूल परिणाम देने
वाले हों। शिव सत्य का प्रतीक माना जाता है।
सात्विक लोगों को सत्य ही प्रिय होता है।
ऐसा नहीं है कि अध्यात्मिक ज्ञानी या सात्विक लोग सांसरिक विषयों को त्याग
देते हैं वरन् वह उसमें पूर्ण लिप्तता का त्याग करते हैं। अपनी भौतिक, सामाजिक तथा
भौतिक उपलब्धियों को अपने मन पर सवार नहीं होते।
न ही भगवान के किसी भी रूप की आराधना से कोई भौतिक सफलता की आशा करते हैं। उनका आशय पूजा या आराधना करन अपने मन की शुद्धि
करना होता है। ही शुद्धि सत्य मार्ग पर ले जाती है जहां भगवान शिव विराजमान रहते
हैं।
इस महाशिवरात्रि पर सभी ब्लॉग लेखक मित्रों, पाठकों तथा फेसबुक सहयोगियेां को हार्दिक बधाई।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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