समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, November 15, 2014

म्लेच्छ लोगों से सतर्क रहें-हिन्दी चिंत्तन लेख(mlechchha logon se satark rahen-hindi though article)



            आजकल हम अपने देश में एक खराब प्रवृत्ति देख रहे हैं कि अपनी समस्याओं, दुर्घटनाओं तथा बुरे व्यवहार से उपजे क्रोध का का लोग सार्वजनिक प्रदर्शन करते हैं-इस दौरान वाहनों को जलाने, प्रहरियों पर पत्थर फैंकने तथा राहगीरों का मार्ग अवरूद्ध कर उन्हें मारने पीटने तक के समाचार आते हैं।  अनेक ऐसे भी समाचार आये कि अनेक शहरों में सेना तथा पुलिस भर्ती के लिये आये युवकों ने अपनी  निराशा का आक्रामकता का प्रदर्शन  करते हुए  सार्वजनिक संपत्ति को न केवल हानि पहुंचाई वरन् राहगीर महिलाओं के साथ अभद्रता भी की।  अनेक बार ऐसे समाचार भी आते हैं कि किसी वाहन से कोई राहगीर कुचल जाता है तो वहां के स्थानीय निवासियों में शािमल कुछ असामाजिक तत्व वाहन जलाने, दुकाने लूटने और प्रहरियों पर पत्थर बरसाने लगते हैं। भारतीय अध्यात्मिक दर्शन इस तरह की प्रवृत्ति को म्लेच्छ प्रवृत्ति का मानता है। यह बात समझ लेना चाहिये।

चाणक्य नीति में कहा गया है कि
-------
वापल-कूप-तडागानामारा-सुर-वेश्मनाम्।
उच्छेदने निराऽशङ्कः स विप्रो म्लेच्छ उच्यते।।
            हिन्दी में भावार्थ-बावडी, कुंआ, वाटिका तथा देवालय में तोड़ फोड़ करने पर जिसे डर नहीं उसे म्लेच्छ कहा जाता है।

            समाज के निराशा का वातावरण जो बना है उसके लिये लोगों का अति आशावाद भी जिम्मेदार है। सभी लोग यह चाहते हैं कि  वह धनी और सुविधासंपन्न हो जायें।  हर कोई नौकरी करना चाहता है।  स्वाभिमानी सभी दिखना चाहते हैं पर स्वामित्व की प्रवृत्ति बहुत कम लोग में पाई जाती है। दूसरे के सामान पर विलासिता मिल जाये या फिर चाहे जैसे भी हो हमारी सभी जगह तूती बोले, इस तरह की सोच ने लोगों का अन्मयस्क बना दिया है।  जैसा कि देखा गया है कि धनी तथा प्रसिद्ध लोगों प्रभाव राजकीय संस्थाओं पर है जिसका लाभ उन्हें मिलता है, वैसा स्वयं को न मिलने पर आमजन क्रुद्ध रहते हैं।  इसलिये स्वयं को शक्तिशाली दिखाने के लिये  अनेक असामाजिक तत्व सदैव तत्पर रहते हैं और जहां आमजन को उत्तेजत करने का अवसर मिले वह अपने साथ साफ करते हैं।  इस तरह के हिंसक प्रदर्शन को  जन उपद्रव का नाम दिया जाता है पर सच  यह है कि दुकानें लूटना और आग लगाने का काम अपराधी ही करते हैं जिनका लक्ष्य अपना हित साधना होता है।  हमें ऐसे म्लेच्छ प्रवृत्ति के लोगों की पहचान कर उनसे सतर्क रहना चाहिये।


दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका 


No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें