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Monday, February 16, 2009

भर्तृहरि संदेश: विषयों में लिप्तता का भाव पीछा नहीं छोड़ता

भिक्षाशनं तदपि नीरसमेकवरं शय्या च भूः परिजनो निजदेहमात्रम्
वस्त्रं विशीर्णशतखण्डमयी च कन्था हा हा! तथापि विषया न परित्यजन्ति

हिंदी में भावार्थ- भिक्षा में मांग कर लायी वस्तु है वह भी एक बार मिली और उसमें कोई रस भी नहीं है। विश्राम करने के लिये अपनी देह को बस जमीन ही मिलती है। आत्मीयजन और सेवक के नाम पर बस एक अपनी देह है। ओढ़ने के लिये पुराना वस्त्र है जो तमाम जगह से फटा हुआ है। हा! हा! फिर भी विषयों में लिप्त होने की इच्छा पीछा नहीं छोड़ती।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- आदमी अमीर हो या गरीब लोगों की विषयों में लिप्तता विद्वानों को दर्शनीय और हास्यास्पद लगती हैं। जिसके पास धन है वह भी उससे प्राप्त होने वाले सुख को लेकर इच्छायें करता हैं-जैसे बड़ा और आकर्षक भवन हो, अनेक महिला ओर पुरुष मित्र हों, समाज पर नियत्रंण करने वाली संस्थाओं पर अपनाप्रभाव हो और हर व्यक्ति हमारा अभिवादन करे। इसके बावजूद भी धनी को चैन नहीं पड़ता। वह अपनी शक्ति का प्रमाण स्वयं ही पाने के लिये समाज में उपद्रव भी फैला देता है यह देखने के लिये कहीं समाज उसकी पकड़ से बाहर तो नहीं हो रहा है। धनिक लोगोंं की यह फितरत होती है कि वह समाज में छोटे और गरीब आदमी को आपस में लड़ाकर फिर पंचायत करने लगते हैं। मतलब उनके अंदर स्वयं को देवता कहलाने की इच्छा बनी रहती है।
धनिकों की बात क्या जिसके पास कुछ भी नहीं है वह भी राजा बनने की इच्छा करता है। उसे पता है कि अब कोई रातों रात अमीर नहीं बनता पर वह बनना चाहता है। तन पर कपड़ फटे हुए हैं, खाने का यह हाल है कि लोग दया कर स्वतः ही प्रदान करते हैं और सोने के लिये उसके पास जमीन ही होती है। ऐसे में भी यही सोचता है कि वह किसी तरह अमीर बने। आजकल तो आधुनिक प्रचार माध्यमों द्वारा गरीब और निम्न श्रेणी के परिवारों के बच्चों को भ्रमित किया जा रहा है उसके परिणाम स्वरूप जो उनमें विद्रोह पैदा हो रहा है उसका आंकलन कोई नहीं करता।
फिल्मों की कहानियों में जो पात्र प्रदर्शित होते हैं उनकी कल्पना में आम युवक बहक जाते हैं। हर कोई लड़का फिल्म अभिनेत्रियों जैसी पत्नी चाहता है और हर लड़की पति के रूप में अभिनेता की कल्पना करती है। हालत यह है कि पैंतालीस साल के अभिनेता 16 वर्ष की लड़कियों के ख्वाब में बसे हुए है तो वहीं अड़तीस साल की अभिनेत्री की फोटो को अठारह साल का लड़का पर्स में रखकर घूमता है। बस वह उमर की धारा में बह रहे हैं पर उसमें अमीर और गरीब दोनों प्रकार के युवक शामिल है। कुल मिलाकर यह है कि इच्छायें और सपने आदमी का किसी भी हालत में पीछा नहीं छोड़ते।
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1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बहुत सुन्दर व्याख्या है.

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