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Wednesday, December 17, 2008

कबीर सन्देश: सदगुणों को ही अपने मन में स्थान दें

माखी गहै कुबास को, फूल बास नहिं लेय
मधुमाखी है साधुजन, गुनहि बास चित देय


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि मक्खी हमेशा दुर्गंध ग्रहण करती है कि न फूलों की सुगंध, परंतु मधुमक्खी साधुजनों की तरह है जो कि सद्गण रूपी सुगंध का ही अपने चित्त में स्थान देती है।

तिनका कबहूं न निंदिये, पांव तले जो होय
कबहुं उडि़ आंखों पड़ै, पीर धनेरी होय

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कभी पांव के नीच आने वाले तिनके की भी उपेक्षा नहीं करना चाहिए पता नहीं कब हवा के सहारे उड़कर आंखों में घुसकर पीड़ा देने लगे।

जो तूं सेवा गुरुन का, निंदा की तज बान
निंदक नेरे आय जब कर आदर सनमान


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अगर सद्गुरु के सच्चे भक्त हो तो निंदा को त्याग दो और कोई अपना निंदा करता है तो निकट आने पर उसका भी सम्मान करो
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोग मंदिरोंे में जाते हैं तो वहीं दूसरों की निंदा करते हैं। अन्य बात तो छोडि़ये जो संत लोग प्रवचन करते हैं वह भी दूसरों की निंदा करते हुए कहते हैं कि परनिंदा मत करो।
दूसरों में दोष ढूंंढना मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है पर जो सच्चे मन से भक्ति करते हैं वह इस दोष से परे हो जाते हैं। परनिंदा का दोष जिनमें नहीं हैं वह भगवान का सच्चा भक्त है भले ही वह इसका दिखावा न करता हो। दूसरों में गुण देखना चाहिये तो वह स्वयमेव अपने अंदर आ जाते हैं। अगर हम किसी में दोष देखेंगे तो वह हमारे अंदर आयेंगे और जो भक्ति कर रहे हैं वह व्यर्थ होती जायेगी।
पंच तत्वों से बनी इस देह में मन, बृद्धि और अहंकार की प्रकृतियों के कारण गुण दोष तो सभी में रहते हैं। जो सामान्य लोग हैं वह दूसरों के दोष बताकर यह साबित करते हैं कि वह उनमें नही हैं। जिन्होंने भक्ति और ज्ञान प्राप्त करने में मन लगाया है वह इस परनिंदा से दूर रहते हैं।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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