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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, January 20, 2017

संस्कृत से अनुवादित रचनाओं ने हिन्दी को बाल्यकाल में ही संपन्न बना दिया-हिन्दी लेख (Sanskrit and Hindi-HindiArticle


                         वैसे तो हमने श्रीमद्भागवत को बीच बीच में खोलकर अनेक बार पढ़ा था पर अब प्रथम स्कंध से ही विधिवत प्रांरभ किया है।  दरअसल हमारे दिमाग में आधुनिक हिन्दी की रचनाओं को लेकर अनेक विचार घुमड़ रहे होते हैं।  अनेक लोग कहते हैं कि हिन्दी में विश्व स्तरीय रचनाओं का संकलन नहीं मिलता। वर्तमान में अनेक रचनाकार कवितायें, कहानियां, उपन्यास तथा अन्य विधाओं में रचनायें कर रहे हैं पर उन पर स्तरीय न होने का आरोप लगाकर वास्तविकता से बचा नही जा सकता। हमारा मानना है कि हिन्दी में संस्कृत सहित अन्य भाषाओं से हुए अनुवादों ने उत्तरभारतीयों का मन मस्तिष्क इतना स्तरीय बना दिया है कि उन्हें सामान्य स्तर सुहाता नहीं है।  गीताप्रेस गोरखपुर ने अकेले ही संस्कृत से अनुवाद कर हिन्दी को इतना संपन्न कर दिया है कि उसके स्तर तक पहुंचना अभी संभव नहीं है।
           महर्षि बाल्मीकी रामायण, वेदव्यासकृत महाभारत और शुकदेव की अनुपम रचना श्रीमद्भागवत ऐसी ग्रंथ हैं जिनका हिन्दी क्या विश्व के किसी भाषा की रचना में समानता नहीं है।  संस्कृत में होने के बावजूद अनुवाद के कारण यह सभी महान ग्रंथ हिन्दी की संपत्ति भी माने जाते हैं। समस्या यही से शुरु होती है।  जिन लोगों ने संस्कृत से अनुदित ग्रंथों को पढ़ा है उन्हें कोई भी रचना पढ़ा दीजिये वह अधिक प्रभावित नहीं होगा। जिन लोगों न नहीं पढ़ा या फिर परिवर्तित परिवेश में नहीं पढ़ पाये वह अंग्रेजी के दत्तक पाठक हो गये हैं। वह आज के हिन्दी लेखकों को एक ऐसा व्यक्ति मानते हैं जिसे अभिव्यक्त होने का अवसर नहीं मिलता है इसलिये वह कागज रंगता है।
           अनेक लोग हमसे कहते हैं कि अपनी किताब छपवाओ। हम मना कर देते हैं। हमारा तर्क होता है कि हम कितना भी अच्छा लिख दें बाल्मीकी, वेदव्यास, शुक्राचार्य, तुलसीदास, कबीर, रहीम और मीरा जैसे नहीं हो सकते। हमारे प्राचीन महान रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में अध्यात्मिक ज्ञान के साथ मन बहलाने के लिये इतनी महान कथाओं की रचना की है कि लगता नहीं कि उनके स्तर तक कोई पहुंच सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अध्यात्मिक ज्ञान इतना परिपूर्ण  कि उसके आगे आप कुछ नहीं रच ही नहीं सकते।
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