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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, November 23, 2016

कौटिल्य और चाणक्य के ज्ञान बिना अर्थशास्त्र-लघु हिन्दी व्यंग्य (What Econmics without Kautilya and chanakya-Hindi Short Satire


                          देश के कुछ बड़े अर्थशास्त्री यह सोचकर परेशान है कि नोटबंदी जैसा बड़ा फैसला उनसे पूछे बगैर ले लिया।  वैसेे हमारे देश में अनेक लोग अर्थशास्त्र पढ़ते हैं पर जिनको कोई बड़ा ओहदा मिलता है तो उनको ही अर्थशास्त्री की पदवी  संगठित प्रचार माध्यम देते हैं। जैसे हम हैं। वाणिज्य स्नातक की उपाधि प्राप्त करने में हमें अर्थशास्त्र से दो चार होना पड़ा था।  लेखक होने के नाते हमें अर्थशास्त्री  मानना चाहिये पर कोई बड़ा पद नहीं मिला तो कोई मानना तो दूर हमारी कोई बात सुनता भी नहीं।  नोटबंदी हमने खूब अंतर्जाल पर लिखा पर कहीं कोई संदेश हिट नहीं हो पाया।  वजह साफ है कि कोई बड़ा पद नहीं मिला जिससे लोग हमको गूगल पर ढूंढते। 
               अब कहना तो नहीं चाहते पर सच यह है कि भारत में इतने पढ़ेलिखे अर्थशास्त्री हुए पर कुछ नहीं कर पाये। देश में गरीबी, भ्रष्टाचार और बेईमानी बढ़ती रही। आधारगत ढांचा-बिजली, पानी और आवागमन के लिये सड़कें पूरी तरह से बनी नहीं। बहुत पहले इस पर राजनीतिक चर्चाओं में मशगूल रहने वाले  एक चायवाले ने हमसे कहा था कि ‘ऐसे पढ़े लिखे अर्थशास्त्रियों से हम अच्छे हैं जो बड़े पदों पर बैठकर भी देश की असली समस्याओं का निराकरण नही कर पा रहे। मुझे बिठा दो पूरे देश का उद्धार कर दूं।’
          वह चायवाला इतनी अच्छी चाय बनाता था कि नगर निगम और जिला कार्यालय के अधिकारी तक उसके यहां चाय पीने आते थे। यह अलग बात है कि अतिक्रमण विरोधी अभियान के चलते उसकी गुमटी उठाकर फैंक दी गयी तब उसने दूसरी जगह जाकर लस्सी की दुकान खोली।  हमने हमेशा उसे प्रसन्नचित्त देखा। वह लस्सी के व्यापार में भी हिट रहा। उसकी राजनीति टिप्पणियों से हम सदा प्रभावित रहे।  उसके व्यवहार से हमने सीखा था कि जागरुक तथा विद्वान  होने के लिये पढ़ालिखा होना जरूरी नहीं है।  जो अपना व्यापार चला ले वह देश को भी चला सकता है। यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि नोटबंदी के विरोधी भी केवल गरीबों, किसानों और मजदूरों की परेशानी की आड़ लेकर जूझ रहे हैं।  यहां तक कि जनवादी भी अपना पुराना रोना रो रहे हैं। विरोध में कहने के लिये उनसे ज्यादा तो हमारे पास ज्यादा भारी भरकम तर्क हैं पर हम इंतजार कर रहे हैं कि आखिर यह नोटबंदी देश में किस तरह का परिणाम देती है।
                  वैसे भी अपने यहां कौटिल्य तथा चाणक्य जैसे अर्थशास्त्री हुए है। यकीन मानिये उनमें से किसी ने एडमस्मिथ और माल्थस को नहीं पढ़ा था जिसे पढ़कर आज के अर्थशास्त्री अपने श्रेष्ठ होने का दावा करते हैं। वैसे हम स्वयं को संपूर्ण अर्थशास्त्री मानते हैं क्योंकि हमने एडमस्मिथ, माल्थस के साथ कौटिल्य तथा चाणक्य का अर्थशास्त्री भी पढ़ा है। हमारा मानना है कि देशी अर्थशास्त्र समझने वाला ही देश का भला कर सकता है और वह कोई मजदूर भी हो सकता है और कारीगर भी।

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