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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, September 12, 2016

हिन्दी दिवस में पुराने ढोल पर नयी थाप लगेगी-हिन्दी दिवस पर विशेष संपादकीय लेख #Special Hindi Article on Hindi Day Hindi Diwas)14SeptemberHindiDay,


                     हिन्दी दिवस आने वाला है। अपने ब्लॉगस्पाट तथा वर्डप्रेस के ब्लॉगों पर पाठकों की संख्या उन पाठों पर अधिक देख रहे हैं जो हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में लिखी हैं।  इस दौरान पाठकों की संख्या आठ से दस गुना बढ़ जाती है। इसका कारण यह है कि लोग हिन्दी दिवस का  भाषण देने तथा निबंध लिखने की तैयारी के लिये अंतर्जाल पर विचरण करते हैं।  इस दौरान हम देखते हैं कि हिन्दी दिवस पर लिखी गयी हास्य कवितायें सर्वाधिक प्रशंसित होती हैं।  पिछले कुछ दिनों से हमने हास्य कवितायें लिखना कम कर दिया था क्योंकि समय की कमी के कारण अध्यात्मिक के अलावा अन्य विषयों पर लिखना कठिन हो रहा था। सबसे बड़ी बात यह कि हिन्दी लेखकों के लिये अंतर्जालीय संपर्क बनाये रखने वाला कोई ऐसा समूह नहीं बन पाया जिसमें सामान्य लेखक के लिये कोई प्रेरणा पैदा हो सके।  हमने देखा है कि अनेक नये लोग अंतर्जाल पर हिन्दी में लिख रहे हैं-यह अलग बात है कि इनमें से कई ऐसे लगते हैं जैसे किसी कम पढ़े जा रहे अंतर्जालीय लेखक की रचनायें  उठा कर रख रहे हैं।  हमारी अनेक रचनायें ऐसे ही हमें मिल जाती हैं जिसके बारे में हम यह सोचना पड़ता है कि हमने उसे कब लिखा था। अपना नाम न देखकर हमें दुःख होता है। फिर भी हमारी अपनी फितरत है लिखते हैं पर एक बात तय है कि उन नये लेखकों के मन में कुंठा होती होगी जिन्हें अपनी रचना बेनामी देखने को मिलने।
           पिछले दस साल अंतर्जाल पर हमने हिन्दी को बढ़ते देखा है पर यहां से प्रसिद्धि पाने वाला कोई लेखक अभी जनमानस में नहीं है। जिस तरह देश मेें मजदूर संगठित तथा असंगठित क्षेत्रों के माने जाते हैं वही स्थिति लेखकों की है। संगठित क्षेत्र के लेखकों के पास लिखने से अधिक प्रबंध कौशल होता है जो प्रसिद्धि पा लेते हैं।  राजकीय तथा निजी संस्थायें उनके ही पास है।  असंगठित क्षेत्र के लेखकों को तो कोई पूछता भी नहीं है पर हमने अंतर्जाल पर देखा है कि अनेक स्वांत सुखाय लेखक इनसे कई गुना अच्छा लिखते हैं।  बहरहाल इस हिन्दी क्षेत्र में इसी संगठित क्षेत्र के विद्वान अपना ज्ञान बघारते नज़र आयेंगे।  टीवी चैनलों पर शोर रहेगा। आखिर में इन्हीं टीवी चैनलों  पर अब हिन्दी का भार आ पड़ा है जो आशंका, आशा तथा संभावना जैसे शब्दों का अर्थ ही नहीं जानते-उर्दू में भी उम्मीद, डर तथा अनुमान जैसे शब्द का यही हाल है। अलबत्ता हमारा इस वर्ष यह पहला लेखक है और आगामी दो दिवस इस पर अन्य रचनायें लिखेंगे। यह तो केवल भूमिका भर है।
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-दीपक ‘भारतदीप’-

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