तात्कालिक रूप से सैन्य कार्यवाही करने की बात तो किसी ने नहीं कहीं थी। अब तो वह देर बाद भी संभव नहीं लगती। पानी रोकते या नहीं पहले घोषणा तो कर देतें! व्यापार में अत्यधिक प्रिय राष्ट्र का दर्जा पहले छीनने की घोषणा तो कर देतें! जरूरत समझते तो बाद मेें वापस कर देतें। यह घोषणा नहीं की। ऐसा लगता है कि कड़ी कार्यवाही का वक्त भारत के हाथ से निकल रहा है। केवल शाब्दिक जमा खर्च पहले ही तरह ही जारी है।
दो बातें सामने आयीं। एक टीवी चैनल पर बहस के समय भारत के एक पूर्व सैन्य अधिकारी ने बड़ी बात कहीं। उसने कहा कि पानी के मसले पर तो वह पिछले दस बारह वर्ष से पर्दे की पीछे बातचीत कराता रहा है। पानी रोकने का मतलब यह है कि सीधे युद्ध को निमंत्रण देना। हफीज सईद कह चुका है कि पानी रोका तो हम सीधस हमला कर देंगे।
उसकी बात हमने सुनी पर लगता है कि एंकर को ब्रंेक की जल्दी थी वह समझी कि नहीं भगवान जाने। इन चैनल वालों को अपने व्यवसायिक हित से मतलब है शब्दों के अर्थ समझने से नहीं। अब जब युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं और हम से पाक डरा हुआ है कि हमला कर सकते हैें तब पानी रोकने पर उसके हमले से क्या डरना? ऐसा लगता है कि ऐसे ही लोग पर्दे के पीछे रणनीति को प्रभावित करते हैं। उसकी बात से तो यह लगा कि वह नवाज शरीफ की बजाय हफीज सईद को ज्यादा महत्वपूर्ण मानता है।
उरी हमले का मामला गर्म था तब रूस ने पाक के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास से मना कर दिया था पर अब उसकी सेना पाकिस्तान पहुंच गयी है। इसका मतलब यह कि रूस से यह मान लिया है कि भारत कुछ करने वाला नहीं है। अगर उसे अपने निर्णय पर कायम रखना था तो भारत कम से कम पानी रोकने तथा व्यापार मित्र राष्ट्र का दर्जा तो छीन लेना था। जनता के गुस्से की लीपापोती हो गयी। दो चार दिन में सब ठंडा हो जायेगा। प्रचारमाध्यमों को विज्ञापन पास करने का समय मिल गया। रूसी सेना का पाकिस्तान पहुंचने का सीधा मतलब यह कि अब कुछ होने वाला नहीं है। 26 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र में भारत के जवाबी भाषण पर वाहवाही के बाद सबकुछ थम जायेगा। चार दिन तक पाकिस्तान तथा टीवी के चैनलों पर बहसों का छुटपुट अध्ययन किया तो पाया कि इन्हीं की सुनो अपनी तरफ से कुछ सोचो मत!
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