पतंजलि योग में कहा गया है कि
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‘श्रोन्नाकाशयोः सम्बंध दिव्यं श्रोन्नम्।‘
हिन्दी में भावार्थ-‘कान व आकाश के सम्बंध में संयम (ध्यान) करने से साधक के श्रोत्र शक्ति दिव्य हो जाती है।’
हम अपनी ही देह में स्थित जिन इंद्रियों के बारे में हम सामान्यतः नहीं जानते ध्यान के अभ्यास से उनकी शक्ति तथा कमजोरी दोनों का आभास होने लगता है। इससे हम स्वतः ही उनके सदुपयोग करने की कला सीख जाते हैं। साधक नासिक, कान, मुख तथा चक्षुओं के गुण व दुर्गुण का ज्ञान कर लेता है तब अधिक सतर्क होकर व्यवहार करता है। जिससे उसके जीवन मित्र अधिक विरोधी कम रह जाते हैं। सच बात तो यह है कि ध्यान से इंद्रियों में स्वतः ही संयम आता है। अगर देखा जाये तो हर मनुष्य उत्तेजना तथा तनाव में स्वयं अपनी हानि इसलिये करता है क्योंकि अपनी ही इंद्रियों के बारे में उसे ज्ञान नहीं होता जो कि स्वच्छंद रूप से विचरण करती हैं।
अत मनुष्य अगर ध्यान की क्रिया अपनाये तो वह इन इंद्रियों की उग्रता को कम कर जीवन में आनंद उठा सकता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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