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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, December 07, 2014

योग के आठ भागों में चरम शिखर है समाधि-हिन्दी चिंत्तन लेख(yog ka aath bhagon mein charam shikhar hai samadhi-hindi thought article)



            पतंजलि योग साहित्य के अनुसार सात भागों से गुजरने के बाद आठवां और अंतिम भाग समाधि है। योग के विषय के व्यापक संदर्भों में पतंजलि योग साहित्य ही एकमात्र प्रमाणिक सामग्री प्रदान करता है।  हमने कथित रूप से अनेक लोगों से सुना है कि अमुक गुरु समाधि में प्रवीण थे या अमुक संत को इस विषय में विशेषज्ञता प्राप्त है।  अनेक लोग तो कहते हैं कि हिमालय की कंदराओं में कई ऐसे योगी है जो समाधि में दक्ष हैं।  जब हम पतंजलि योग साहित्य का अध्ययन करते हैं तो लगता है कि इस तरह की बातें केवल प्रमाणिक नहीं है।  समाधि योग का चरम शिखर है।  एक तरह से योग साधना की आहुति समाधि ही है।
            ऐसे में अनेक प्रश्न दिमाग में आते हैं। हम जिन लोगों की समाधि विषयक योग्यता के बारे में सुना है उनकी बाकी सात भागों में सक्रियता की चर्चा नहीं होती।  आसन और प्राणायाम का भाग अत्यंत महत्वपूर्ण है।  वैसे हम आसनों की बात करें तो अब अनेक प्रकार के व्यायाम भी इनके साथ वैज्ञानिक ढंग से इसलिये जोड़े गये हैं क्योंकि पहले समाज श्रम आधारित था पर अब सुविधा भोगी हो गया जिससे लोगों को दैहिक शुद्ध करायी जा सके।  यह व्यायाम रूपी आसान इसलिये वैज्ञानिक हैं क्योंकि इस दौरान सांसो के उतार चढ़ाव का-जिसे प्राणायाम भी कहा जाता है- अभ्यास भी कराया जाता है।  एक तरह से आसन और प्राणायाम का संयुक्त रूप बनाया गया है। पतंजलि योग में प्राणायाम में प्राण रोकने और छोड़ने का अभ्यास ही एक रूप माना गया है। आसन से आशय भी सुखासन, पद्मासन या वज्रासन पर बैठना है। बहुत सहज दिखने वाली आसन और प्राणायाम की प्रक्रिया तब बहुत कठिन हो जाती है जब मनुष्य के मन और देह पर भोग प्रभावी होते हैं। योगाभ्यास के  दौरान देह से पसीना निकलता ही जिससे देह के विकार बाहर आते हैं पर सवाल यह है कि इसे करते कितने लोग हैं? जिनके बारे में समाधि लगाने का दावा किया जाता है वह पतंजलि योग के कितने जानकार होते हैं यह पता ही नहीं लगता।
            यहां हम बता दें कि भक्ति के चरम को छूने वाले अनेक संतों ने तो योग साधना को भी बेकार की कवायद बताया है।  इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन संतों ने भक्ति का शिखर अपने तप से पाया पर सच यह है कि वह भक्ति भी उसी तरह सभी के लिये कठिन है जैसे कि योग साधना।  दूसरी बात यह है कि इन महापुरुषों ने योग साहित्य का अध्ययन न कर केवल तत्कालीन समाज में ऐसे योगियों को देखा था जिनका स्वयं का ज्ञान अल्प था।  अगर इन महापुरुषों ने योग साधना का अध्ययन किया होता तो वह जान पाते कि जिस भक्ति के शिखर को उन्होंने पाया है वह समाधि का ही रूप है और कहीं न कहीं उन्होंने अनजाने में ही योग के आठों भागों को पार किया था।  योग साहित्य से इन महापुरुषों की अनभिज्ञता का प्रमाण यह है कि वह योग को तीव्र या धीमी गति से प्राणवायु को ग्रहण या त्यागने की प्रक्रिया  ही मानते थे जो कि योग साधना का केवल एक अंशमात्र है।  यह अलग बात है कि इन महापुरुषों के  कथनों को भक्ति की सर्वोपरिता बताने वाले आज के पेशेवर संत उन भक्तों के सामने दोहराकर वाहवाही लूटते हैं जो देह मन और बुद्धि के विकारों से ग्रसित हैं। कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है।  जब वात, पित और कफ के कुपित से पीड़ित समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग हो तब हार्दिक भक्ति करने वाले मिल जायेंगे यह सोचना भी व्यर्थ है।
            हमने ऐसे लोग भी देखें हैं जो योग साधना प्रारंभ करते हैं तो कथित धार्मिक गुरू उन्हें ऐसा करने से रोक देते हैं।  अनेक गुरु तो यह कहते हैं कि योग साधना से कुछ नहीं होता। बीमारी दवा से जाती है और भगवान भक्ति से मिलते हैं।  यह प्रचार भयभीत और कमजोर लोगों के दिमाग की देन है।  मूलतः सभी जानते हैं योग साधना से व्यक्ति में एक नयी स्फूर्ति आने के साथ ही उसके मन मस्तिष्क में आत्मविश्वास पैदा होता है जिससे वह किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहता। इसलिये कायर और कमजोर लोग आलस्यवश न केवल स्वयं योग साधना से दूर रहते हैं बल्कि दूसरों में भी नकारात्मक भाव पैदा करते हैं।
            योग साधना की बातें सभी करते हैं पर महर्षि पतंजलि योग के सूत्रों का पढ़ने और समझने की समझ किसमें कितनी है यह तो विद्वान लोग ही बता सकते हैं।  हमारा एक अनुभव है कि जो नित्य योग साधना करते हैं उन्हें इसका अध्ययन अवश्य करना चाहिये। जिस तरह आसना के समय सांसों के अभ्यास से दोनों काम होते हैं उसी तरह योग सूत्र पढ़ने पर हम उनसे होने वाले लाभों को पढ़कर अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि समाधि विषयक भ्रम दूर हो जाते हैं।


दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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