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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, March 29, 2013

ऋग्वेद का संदेश-जीवन में संकल्प धारण करें (jivan mein sankalp dharan karen-rigves se sandesh)

      इस संसार में जो सफल तथा  व्यक्ति प्रसिद्ध हुए हैं उन्होंने अपने लक्ष्य का निर्माण बाल्यकाल में ही कर लिया था। कुछ ने युवा होने पर संकल्प धारण किया पर उनके प्रयास निष्काम होने के साथ ही दृढ़ संकल्प के साथ जुड़े हुए थे। इसलिये वह सफल व्यक्ति कहलाये।  सच बात तो यह है कि अनेक लोग अपने लक्ष्य तथा संकल्प बदलते रहते है। परिणामस्वरूप उनके हाथ कुछ नहीं आता।  इसके अलावा जो लोग  अपने लक्ष्य के साथ कामनाओं की संभावना अधिक ही मन में  रखते हैं, वह भी अधिकतर नाकाम ही होते हैं।  अधिकतर लोग किसी कार्य को पेट पालने या कमाने का लक्ष्य रखकर प्रारंभ करते हैं।  उनके लिये कमाना ही फल है।  ऐसे में उनकी बुद्धि संकीर्ण हो जाती है जिससे व्यापक रूप से कार्य करना संभव नहीं हो पाता।  पहले तो यह समझना चाहिये कि सबका दाता परमात्मा है।  दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम!  मनुष्य को अपना काम यह सोचकर करना चाहिये कि वह तो उसे करना ही है।  बिना काम किये शरीर जर्जर हो ंजाता है।  उस काम से जो उसे भौतिक उपलब्धि होती है वह कोई फल नहीं होता क्योंकि वह तो आगे के काम में व्यय हो जाती है।  नौकरी में वेतन मिले या व्यापार में लाभ हो वह कोई साथ नहीं रखता बल्कि परिवार और अपने पर खर्च करता है। यह उपलब्धि कर्म का विस्तार करती है न कि वह फल है। इसलिये काम अपने हृदय को संतोष देने के लिये करना चाहिये।
 ऋग्वेद में कहा गया है कि
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आकृतिः सत्या मनसो में असतु।
           हिन्दी में भावार्थ-मन के संकल्प और प्रार्थना सत्य हो।
समाना व आकृतिः  आकूतिः समाना हृदयान वः।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसह्यसति।।
            हिन्दी में भावार्थ-मनुष्यों  के संकल्प एक समान रहें और हृदय भी एक समान हों जिससे संगठित होने पर कार्य संपन्न होता है। जब संकल्प, मन और विचार का मेल होता है तब एकता स्वतः हो जाती है।
         दूसरी बात यह कि अपना मेल उन लोगों से करना चाहिये जिनका संकल्प, विचार तथा लक्ष्य समान हो। विपरीत यह प्रथक चाल चलन वाले से संबंध रखने से कोई लाभ नहीं होता।  समान विचाराधारा वाले के साथ चलने पर संगठन बनता है और कोई लक्ष्य आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।  जीवन में संकल्प का अत्यंत महत्व है। जिस तरह का संकल्प हम करते हैं वैसा ही वातावरण हमारे सामने आता है।

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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