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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, September 04, 2009

मनुस्मृति-अधिक खट्टे पदार्थ खाने योग्य नहीं (manu smriti-khatti shay khane yoggya nahin)

दधिभक्ष्यं च शुक्तेषु सर्वे च दधिसम्भवम्।
यानि चैवाभियूशयन्ते पुष्पमूलफलैः शुभैः।।
हिंदी में भावार्थ-
शुक्तों में दही तथा उससे बनने वाले पदार्थ-मट्ठा तथा छाछ आदि-तथा शुभ नशा न करने वाले फूल, जड़ तथा फल से निर्मित पदार्थ-अचार,चटनी तथा मुरब्बा आदि-भक्षण करने योग्य है।
आरण्यानां च सर्वेषां मृगानणां माहिषां बिना।
स्त्रीक्षीरं चैव वन्र्यानि सर्वशक्तुनि चैव हि।।
हिंदी में भावार्थ-
भैंस के अतिरिक्त सभी वनैले पशुओं तथा स्त्री का दूध पीने योग्य नहीं होता। सभी सड़े गले या बहुत खट्टे पदार्थ खाने योग्य नहीं होते। इस सभी के सेवन से बचना चाहिये।
वृथाकृसरसंयावं पायसायूपमेव च।
अनुपाकृतमासानि देवान्नानि हर्वषि च।।
हिंदी में भावार्थ
-तिल, चावल की दूध में बनी खीर,दूध की रबड़ी,मालपुआ आदि स्वास्थ्य के हानिकाकाकर हैं अतः उनके सेवन से बचना चाहिये।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-आजकल जिस तरह हमारा खानपान हो गया है उससे एक बात साफ लगती है कि स्वास्थ्य के प्रति हमारा बिल्कुल ध्यान नहीं है। लोग उन्हीं चीजों का सेवन कर रहे हैं जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोग नहीं है। बहुत खट्टे तथा दूध से बनने वाले पदाथों के सेवन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जो कि स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। दूध से बना घी ही केवल स्वास्थ्य के लिये अच्छा है बाकी उससे बने अन्य पदार्थों के लिये यह बात नहीं कही जा सकती। रबड़ी खाने का शौक कई लोगों को होता है जबकि उसे मनुस्मृति में अच्छा नहीं माना जाता।
यह अजीब बात है कि अनेक धार्मिक कार्यक्रमों में दुग्ध से बने ऐसे ही पदार्थ ही प्रसाद के रूप में दिये जाते हैं जिनको स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता जबकि उनका आयोजन अपने ही धर्म के प्रचार के लिये करते हैं जिसकी पुस्तकों में ऐसी वस्तुओं को निषेध किया गया है।
सच बात तो यह है कि खानपान में ही अगर सावधानी बरती जाये तो स्वास्थ्य अच्छा रह सकता है और कभी अपनी देह लेकर पश्चिमी चिकित्सा पद्धति से काम करने वाले चिकित्सकों के पास उसे बिचारगी का भाव लेकर प्रस्तुत नहीं करना पड़ता। बीमार पड़ने के बाद तो हमारी देह चिकित्सकों के अधीन हो जाती है इसलिये अच्छा है कि पचने योग्य पदार्थ ही सेवना किये जायें।
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