समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, June 19, 2009

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-विश्राम करने से संघर्ष की शक्ति बढ़ती है

परिश्रान्तं हि युध्येत विश्रान्तं सुविधानतः।
दुरार्यार्तहतप्राणं न शस्त्रग्रहणमम्।।
हिंदी में भावार्थ-
बाध्यता हो तो थक गया आदमी भी युद्ध कर सकता है पर विश्राम करने के बाद उसकी क्षमता बढ़ जाती है और वह विधिपूर्वक युद्ध कर सकता है। बहुत लंबी दूरी तय कर आया व्यक्ति तो शस्त्र भी नहीं ग्रहण कर सकता।
अमानितं हिं युध्येत कृतमानार्थसंग्रहम्।
न विमानितम्तर्थ प्रदीप्तक्रोपावकम्।।
हिंदी में भावार्थ-
जिस सेना का अपमान हुआ हो वह सम्मान पाने के लिये युद्ध कर सकती है पर जो अपमान की क्रोधाग्नि में जल रही हो वह युद्ध के योग्य नहीं होती।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-कौटिल्य का अर्थशास्त्र केवल भूमिपति राजाओं के लिये नहीं लिखा गया बल्कि घर परिवारों और व्यवसायों के राजाओं के लिये भी उसमें सीखने लायक है क्योंकि जहां तक आचरण, व्यवहार और नैतिकता की बात है तो हर प्रकार के स्वामी को आदर्श प्रस्तुत करना चाहिये। यहां राजाओं के लिये जहां यह संदेश है कि वह अपने सैनिकों की मनोदशा को समझें वही स्वामित्व धारण करने वाले सामान्य लोगों को भी यही समझाया जा रहा है कि वह अपने शासितों के प्रति सहानुभूति दिखायें।
कोई अनुचर अपना सम्मान बचाने के लिये स्वामी के कार्य को संपन्न करने का प्रयास कर सकता है अगर वह अपमान के कारण क्रोध में जल रहा है तो यह किसी भी कार्य को सही ढंग से संपन्न नहीं कर सकता। अगर अधिकारी ने अपने अधीनस्थ का अपमान उसे नकारा बताकर किया है तो फिर उसे यह आशा नहीं करना चाहिये कि वह ठीक ढंग से अंजाम देगा। अगर फिर भी उसे कार्य करने के बाध्य किया गया तो वह उसे उल्टा पुल्टा कर सकता है। उसी तरह अगर अधीनस्थ को विश्राम देकर काम करने दें तो वह बेहतर ढंग से उस कार्य को कर सकता है। कार्य पर तत्काल उपस्थित हुए अधीनस्थ को पहले सांस लेने दें फिर उसे काम सौंपे। वैसे देखा जाये तो यह कुशल प्रबंधन का एक तरीका है।
.......................................................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्द योग
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें