किसी भी अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में यह जरूरी नहीं कि भारत का पाकिस्तान से मुकाबला हो। दरअसल नाकआउट दौर में पहुंचने से पहले लगी मैच होते है जिसमें सदस्य देशों के वरीयता सूची के आधार
पर होता है। हॉकी में भारत सदैव दूसरे समूह में रहता था और दोनों टीमें सेमीफायनल फायनल में टकराती थीं। कम से कम तीन विश्व क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत पाकिस्तान आपस में सामने नहीं खेले। अब
हालत यह है कि हर क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत पाकिस्तान के एक ही समूह में रहते हैं। सच बात तो यह है कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिता में सबसे ज्यादा राजस्व भारत पाक मैच से मिलता है। लगता है कि टीम की वरीयतायें छोड़कर आयोजक अधिक राजस्व कमाने के लिये भारत पाक मैच अनिवार्य बनाते हैं। अगर पाकिस्तान या भारत अलग अलग समूहों में रहें तो इसकी संभावना रहती है कि कोई एक या दोनों ही नाकआउट दौर में पहुंचे ही नहीं और राजस्व की हानि हो जाये। अगर राष्ट्रवादी यह पूछते कि आखिर भारत व पाकिस्तान एक ही समूह में कैसे रखे जाते हैं तो बात जमती भी। दरअसल राष्ट्रवादियों के शिखर पुरुष कभी भी अपने अनुयायियों को तार्किक बनते देखना नहीं चाहते क्यों तब राजकाज के संबंध में कठिन सवाल वह उठाने लगेंगे जो कि विरोधियों को भी रास आयेंगे। हम राष्ट्रवादियों को
समझाते रहें हैं कि क्रिकेट खेल नहीं व्यापार है जिसमें पूंजीपति और सट्टेबाज साथ साथ मिले हैं। देशभक्ति का रस इसमें मिलाया जाता है ताकि लोग भ्रम में रहें।
कल हमने मैचा देखा पर परिणाम से अधिक हमारी रुचि खिलाड़ियों के हावभाव में ही थी-पाकिस्तान के पुराने दिग्गजों ने पहले ही कह दिया था कि उनके कम से तीन खिलाड़ी चमत्कारिक प्रदर्शन करें तभी भारत से जीत पायेंगे पर इसकी संभावना नगण्य है। कल भारतीय खिलाड़ियों के हावभाव ऐसे लग रहे थे जैसे कि सेठ हों तो पाकिस्तानी रोजंदारी वाले मजदूर दिख रहे थे। न उन पर हार के तनाव का भय था न भारतीयों से परंपरागत प्रतिद्वंद्वता वाला भाव था। भारत के अधिकतर खिलाड़ी करोड़ों में खेलने वाले हैं जबकि पाकिस्तानी अब रूखे सूखे से ही काम चलाते नज़र आ रहे थे। अब तो स्थिति यह है कि बीसीसीआई सरकार से दबाव डालकर कहीं पाकिस्तान से द्विपक्षीय श्रृंखला खेलना भी चाहे तो अनेक बड़े खिलाड़ी यह कहकर अलग हो सकते हैं कि इतनी स्तरहीन टीम से हम नहीं खेलेंगे तब दोयम दर्जे की टीम उसके यहां भेजी जायेगी-जैसा जिम्मबाब्बे व वेस्टइंडीज में भेजी जाती है।
जीन्यूज को अतिराष्ट्रवाद से बचना चाहिये।
जी न्यूज चैनल अतिराष्ट्रवाद की तरफ बढ़ता जा रहा है जो कि बोरियत पैदा करता है। बात पाकिस्तान से चैंपियंस ट्राफी में खेलने की है। भारत ने तय किया है कि वह पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय क्रिकेट श्रृखला नहीं खेलेगा। ऐसा पहले भी कई बार हुआ पर ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में पाकिस्तान से भारत खेलता है। जीन्यूज अब चैंपियंस ट्राफी में चाहता है कि भारत पाकिस्तान से न खेले और उसे दो अंक ले जाने दे। हम सदा ही पाकिस्तान से द्विपक्षीय श्रृंखला के विरोधी हैं पर अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में उससे मुकाबले रोकने का समर्थन नहीं करते। हमारी राय में यह अतिराष्ट्रवाद है जो सोच को कुंद कर देता है।
हवाला पर फौजदारी कार्यवाही के बिना कहीं किसी भी समस्या का हल मिलना संभव नहीं है। यह समन वमन से कुछ नहीं होने वाला! नोटबंदी के बाद सब जगह अपराध लगभग थम गये थे पर जैसे ही बाज़ार में पैसा आ गया। सब कुछ वैसा ही हो गया। हमें तो ऐसा लग रहा है कि इस देश में हवाला कारोबारी ही सबसे ज्यादा प्रभावी है। वह इधर भी खिलाते हैं उधर भी खिलाते हैं। इसलिये न वह पकड़े जाते हैं न उनके ग्राहक! खालीपीली टीवी पर बहसें देखते रहो।
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