फिल्मी व टीवी उद्योग के लोग भले ही दावे करें कि उनके यहां सब सामान्य है पर जानकार लोग मानते हैं कि यह सब दिखावा है। गैर हिन्दू देशों का पैसा भारतीय मनोरंजन व्यवसाय में आता है इसलिये ही उसमें पीर फकीर संस्कृति की आड़ लेकर भारतीय धर्मो का आकर्षण कम करने वाली कहानियां लिखी जाती हैं। इस पर बहस अलग से कर सकते हैं पर हमें तो यह विज्ञापनों में भी दिखाई देने लगा है।
अभी हाल ही में बाहूबली फिल्म की सफलता ने पूरे विश्व में झंडे गाड़े। हमारे मुंबईया फिल्म के तीन कथित नायकों की-यह धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक माने जाते हैं-सफलता उसके आगे फीकी हो गयी। वैसे में अनेक जानकार यह सवाल उठाते हैं कि फिल्म उद्योग को अक्षयकुमार व अजय देवगन कोई कम कमा कर नहीं देते पर उन्हें सुपर स्टार कहते हुए गैर हिन्दू देशों के पूंजीपतियों से प्रायोजित प्रचार माध्यम उस तरह महत्व नहीं देता। बहरहाल बाहूबली पर पाकिस्तानी प्रचार माध्यमों ने भी रोना रोया-यह अलग बात है कि वहां यह फिल्म भी जमकर चल रही है। ऐसे में जब धर्मनिरपेक्ष महानायकों की छवि धूमिल हो रही थी तो एक विज्ञापननुमा समाचार एक चैनल में देखा जिसमें दंगल फिल्म की चीन में सफलता की चर्चा की गयी थी और धर्मनिरपेक्ष नायक दिखाया जा रहा था। देखा जाये तो बाहूबली से पहले ही दंगल फिल्म बाज़ार में आयी है। बाहुबली चीन में भी सफल मानी जा रही है। जिस चैनल पर यह समाचानुमा विज्ञापन आया वह धर्मनिरपेक्षता का झंडाबरदार है। ऐसे में दंगल की चीन में सफलता की बात वह कर रहा था तो लगा कि कहीं नि कहीं विज्ञापननुमा समाचारों की भी रचना की जाती है कि धर्मनिरपेक्षता कहीं हिन्दुत्व से पिछड़ न जाये।
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