समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, May 31, 2014

लकड़ी और पत्थर में परमात्मा का निवास नहीं होता-चाणक्य नीति के आधार पर चिंत्तन पर लेख(lakdi aur patthar mein parmatma ka niwas nahin hota-A hindi religion thought based on chankya policy)



      हमारे देश में साकार तथा निरंकार दोनों प्रकार की भक्ति को मान्यता प्रदान की जाती है। यहां तक कि अनेक अध्यात्मिक विद्वान यह भी मानते हैं कि चाहे मूर्ति पूजा करें या नहीं पर परमात्मा के प्रति सहज भाव से की गयी भक्ति अध्यात्मिक शुद्धता प्रदान करती है। यही अध्यात्मिक शुद्धता जीवन में शांति के साथ ही अपनी समस्याओं का हल करने की शक्ति प्रदान करती है। यह अलग बात है कि साकार भक्ति की आड़ में हमारे यहां अनेक प्रकार के सिद्ध मंदिर बताकर वहां लोगों को पर्यटन के लिये प्रेरित करने का प्रयास किया जाता है। प्राचीन धर्मग्रंथों की कथाओं में वर्णित महापुरुषों से संबंद्ध स्थानों को पवित्र मानकर वहां अनेक प्रकार के कर्मकांडों की परंपरायें विकसित की गयी हैं।  इनसे धर्म के व्यापारियों के वारे न्यारे होते हैं।

चाणक्य नीति में कहा गया है कि
-------------------
काष्ठापाषाणधातूनां कृत्वा भावेन सेवनम्।
श्रद्धया च तया सिद्धस्तब्ध विष्णुः प्रसीदति।।
     हिन्दी में भावार्थ-लकड़ी, पत्थर एवं धातु की बनी मूर्तियों भावना पूर्वक सेवा करनी चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु अपनी कृपा का प्रसाद प्रदान करते हैं।
न देवो विद्यते काष्ठे न पाषाणे न मृन्मये।
भावे हि विद्यते देवस्तस्माद् भावी हि कारणम्।।
     हिन्दी में भावार्थ-देव लकड़ी में विद्यमान नहीं है न ही पत्थर में विराजमान है न ही मिट्टी का प्रतिमा उसके रूप का प्रमाण है। निश्चय ही परमात्मा वहीं विराजमान है जहां हार्दिक भावना से भक्ति की जाती है।

      देखा जाये तो दिन का विभाजन प्रातः धर्म, दोपहर अर्थ, सांय मनोरंजन तथा रात्रि मोक्ष यानि निद्रा के लिये होता है। देखा यह जा रहा है कि कथित तीर्थों पर लोग जाकर एक तरह से पर्यटन करने जाते हैं। वहां स्थित धार्मिक ठेकेदार दान के नाम पर कर्मकांड कराकर उनका आर्थिक शोषण करते हैं। अज्ञान के अभाव के स्वर्ग की चाहत में लोग इन कर्मकांडों में व्यय कर अपने घर लौटकर आते हैं।  इससे न तो उनके मन की शुद्ध होती है न विचार पवित्र रहते हैं इसलिये उनका जीवन फिर पुराने ढर्रे पर चलता है जिसमें बीमारी, तनाव और अशांति के अलावा कुछ नहीं रह जाता।
      जिन लोगों को अपना जीवन सहजता और शांति के साथ बिताना है उन्हें प्रातकाल के समय का उपयोग योग साधना तथा उद्यानों के भ्रमण में बिताना चाहिये।  समय मिले तो मूर्तियों की पूजा करना चाहिये पर सच यह है कि पत्थर, लोहे, पीतल या मिट्टी की बनी प्रतिमाओं में परमात्मा नहीं होते वरन् हमारे अंदर के भाव से उनमें आभास रहता है।  इस भाव का आनंद तभी लिया जा सकता है जब अपना हृदय शुद्ध हो।

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका 
६.अमृत सन्देश  पत्रिका

No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें