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Saturday, May 01, 2010

विदुर दर्शन-क्षमावन पुरुष की राह देवता भी देखते हैं (kshamavan purush aur devata)

अतिवादं न प्रवदेव वाद्येद् योऽनाहतः प्रतहन्यान्न घातयेत्।
हन्तुं च यो नेच्छति पापकं वै तस्मै देखाः समुहयन्त्यागताय।।
हिन्दी में भावार्थ-
जो स्वयं किसी के प्रति बुरी बात न स्वयं कहता न दूसरे को कहने के लिये प्रेरित करता, बिना मार खाये किसी को नहीं मारता और न मरवाता है, अपराधी को भी क्षमा करता है, ऐसे मनुष्य के आगमन की तो देवता भी बाट जोहते हैं।
यदि सन्तं सेवति यद्यसन्तं तपस्विनं यदि वा स्तेनमेव।
वासो तथा रंगवश्र प्रयानि तथा तेषा वशमभ्युवैति।।
हिन्दी में भावार्थ-
जैसे कोई वस्त्र जिस रंग में रंगा जाये, वैसा ही हो जाता है उसी तरह जब कोई सज्जन आदमी किसी तपस्वी, दुष्ट या चोर की सेवा करता है तो उनके वश में हो जाता है-उनका रंग उस पर चढ़ता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-कहा जाता है कि शक्ति ही सहनशीलता की पहचान होती है। जिसमें शक्ति नहीं है वह बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाता है। आजकल तो सहनशीलता का लोगों को सर्वथा अभाव दिखता है। अशुद्ध खानपान, भौतिक पदार्थों के प्रति अधिक आकर्षण तथा विलासिता को जीवन के लिये अनिवार्य मानने की प्रवृत्ति ने लोगों को शारीरिक, मानसिक तथा वैचारिक रूप से कमजोर बना दिया है। किसी को न तो अपनी स्वयं की आलोचना सहन होती है और न ही कोई अपने विचार पर बहस सुनना चाहता है। कहते हैं कि थोथा चना, बाजे घना-इसके दर्शन अब हर कदम पर किये जा सकते हैं। अल्पज्ञानियों का झुंड बहस करता है। निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता उल्टे झगड़े ही होते हैं। स्थिति यह है कि अमन का प्रयास करने के के लिये एक साथ निकलने वाले लोग आपस में लड़ पड़ते हैं।
यह सब हमारे समाज और लोगों की कमजोरी की निशानी है। अशुद्ध तथा मिलावटी पदार्थों के सेवन से हमारे देश के नागरिकों की शारीरिक शक्ति नित प्रतिदिन कम होती जा रही है। यह शक्तिहीनता अंततः चिढ़ में बदल जाती है। फिर संगत करने के लिये ऐसे ही लोग मिलते हैं तो जो सहज और सज्जन भाव वाले होते हैं उन पर भी रंग चढ़ जाता है। बहुत कम लोग हैं जो शांति के लिये सक्रिय रहते हैं वरना तो अधिकतर झगड़ा कर उसे देखने का शौक रखते हैं। अतः जहां तक हो सके अपने खान पान में शुद्धता के साथ अपने निजी संपर्क भी ऐसे तरह बनाये जहां से वैमनस्य फैलाने का संदेश न मिलता हो। एक बात याद रखें कि आदमी पर संगत की रंगत चढ़ती ही है, अत: इसकी उपेक्षा नहीं करना चाहिये।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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1 comment:

SANJEEV RANA said...

bilkul thik kaha aapne

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