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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, October 21, 2008

दूसरे की रोटी छीनना है शैतान का काम-व्यंग्य कविता

हो जाता है जिन लोगों को
अपने खास होने का वहम
चेहरे चमका लेते हैं सौंदर्य प्रसाधन से
आईने के सामने खड़े होकर
छोटे पर जुर्म ढाकर दिखाते
अपनी ताकत का सबूत बड़े होकर

लेते हैं सर्वशक्तिमान का नाम
करते हैं अपने घर भरने का
बताते लोगों के भले का काम
फरिश्तों की तस्वीरों पर चढ़ाते हैं माला
झूठी हंसी के साथ
लगाते नारे और चलाते वाद
हो जाये जैसे आदमी मतवाला
फैंके चाहे किसी पर पत्थर
चाहे घौंपे किसी में भाला
पवित्र किताबों पर सिर माथे लगाने की बात करते
पर इस सच से मूंह छिपाते कि
इस दुनियां की सबसे बड़ी शैतानियत है
लगाना दूसरे के रोजगार पर ताला
करते हैं वह सब काम जो शैतान करते हैं
पर वह फरिश्तों के बंद होने का दम भरते हैं
लोगों को भेड़ की तरह भीड़ में जुटाकर
दुकानों को लगाकर आग
तोड़कर वाहनों को भी नहीं शर्माते
हंसते हैं अपनी शैतानियत पर अड़े होकर

घमंड रावण का नहीं रहा
तो उनका क्या रहेगा
सर्वतशक्तिमान का नियम है
जो दूसरों की रोटी छीनेगा
वह कभी अपनी लिये दाने बीनेगा
उसका नाम लेने से
कोई तर नहीं जाता
सभी बंदों पर सर्वशक्तिमान की होती नजर
कुछ लोगों को अपने ताकतवर होने का
केवल भ्रम हो जाता
दिखते हैं शहंशाह पर
नाचते हैं कठपुतली की तरह खुद
कोई नट नचाये जाता पीछे खड़े होकर

कहैं महाकवि दीपक बापू
दुकानें जलाने से आंदोलन नहीं चलते
भूखे को रोटी दिलाने के दावा करने वाले
एक नहीं हजारों देखे
पर किया नहीं किसी भूखे के लिये
एक वक्त के छोटे टुकड़े का इंतजाम
पर जलाकर ठेले छीन लेते हैं किसी की रोटी
जो है शैतान का काम
पर फरिश्तों के गुण गाते दिखाने के लिये
हर चौराहे पर खड़े होकर

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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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