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जियो ने छह महीने तक फ्री इंटरनेट चलाया पर हम तो अंतिम दिनों में उससे जुड़ पाये। दरअसल नोटबंदी के दौरान भी लोग इस फ्री सेवा का मजे लेते रहे और उन्हें चार्ज कराने के लिये कहीं पैसे नहीं देने पड़े। अगर नोटबंदी के दौरान जियो फ्री नहीं होता तो शायद उससे ज्यादा हाहाकार मचता जितना मचा। देखा जाये तो पिछले तीन साल में उन लोगों ने ही अच्छे दिन देखे जिन्होंने जियो फ्री के मजे लूटे। हमारे देश में अच्छा दिन तभी होता है जब फ्री में कुछ मिल जाता है। कहें तो जियो फ्री ने तीन साल में छह महीने में जो अच्छे दिन दिखाये वह सत्तर साल में नहीं दिखे। भक्तों के पास यह इकलौता उदाहरण ही जो यह कह सकते हैं कि हमने तो अच्छ दिन दिखाये।
हम अच्छे दिन का पूरा लाभ नहीं उठा सके इसमें हमारा ही दोष है। भक्त यह भी कह सकते हैं कि हमने तो अच्छे दिन लाने का वादा किया था ले जाने का काम तुम्हारा था। नहीं किया तो अब हमारा क्या दोष?
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याद रखें इससे ज्यादा बताने को कुछ नहीं है क्योंकि बाकी चीजें तो प्रचार के लिये ही ठीक हैं। वैसे जियो वाले जिस तरह जनता में पैठ बनाये हुए हैं उससे तो वह सीधे किसी के पज्ञ़ा में राजनीतिक जनमत भी बना सकते हैं यह अलग बात है कि ऐसा प्रत्यक्ष करने की बजाय वह अप्रत्यक्ष रूप से वैसे ही सभी संगठन अपनी मुट्ठी में रखते हैं।
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