समय पर दोस्ती दिखाना है शातिर अंदाज़, हर इंसान में बसा है एक चालाक बाज़ं
मुंह से आदर्शों की बात करते सब, ‘दीपकबापू’ छिपाते अपने स्वार्थ साधने के राज़।।
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लोकतंत्र में बोलने की आजादी चाहिये, वक्ता गाली देने का आदी होना चाहिये।
‘दीपकबापू’ वोट की जंग में पागलपन चलाते, जीतें ठीक हारें तो बरबादी चाहिये।।
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वादे के पुलिंदे पकडा़ दिये जकड़े रहो, नारों के साथ झडे थमा दिये पकड़ रहो।
‘दीपकबापू’ जिंदगी चले सबकी भगवान भरोसे, राजा लोगों तुम चाहे अकड़े रहो।।
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मुंह से खाने की हद सब नहीं जानते, बोलने को आतुर अपना कद नहीं जानते।
बृहद गगन तले पाया छोटा हिस्सा, ‘दीपकबापू’ फूले हैं अपना पद नहीं जानते।।
मुंह से आदर्शों की बात करते सब, ‘दीपकबापू’ छिपाते अपने स्वार्थ साधने के राज़।।
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लोकतंत्र में बोलने की आजादी चाहिये, वक्ता गाली देने का आदी होना चाहिये।
‘दीपकबापू’ वोट की जंग में पागलपन चलाते, जीतें ठीक हारें तो बरबादी चाहिये।।
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वादे के पुलिंदे पकडा़ दिये जकड़े रहो, नारों के साथ झडे थमा दिये पकड़ रहो।
‘दीपकबापू’ जिंदगी चले सबकी भगवान भरोसे, राजा लोगों तुम चाहे अकड़े रहो।।
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मुंह से खाने की हद सब नहीं जानते, बोलने को आतुर अपना कद नहीं जानते।
बृहद गगन तले पाया छोटा हिस्सा, ‘दीपकबापू’ फूले हैं अपना पद नहीं जानते।।