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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, November 26, 2016

कास्त्रो की मौत से क्यूबा आजादी की सांस ले पायेगा या नहीं-हिन्दी संपादकीय (Cuba May be Possible Freedom of Espression After Death of FidelCastro

                      क्यूबा का तानाशाह फिदेल कास्त्रो स्वर्ग सिधार गया।  हमारी दृष्टि से वह दुनियां का ऐसा तानाशाह रहा जिसने सबसे लंबी अवधि तक राज्य किया। वामपंथी विचाराधारा का प्रवाह ऐसे ही लोगों की वजह से हुआ है जो यह मानते हैं कि दुनियां के हर आदमी की जरूरत केवल रोटी होती है-कला, साहित्य, फिल्म और पत्रकारिता में स्वतंत्रता की अभियक्ति तो ऐसे तानाशाह कभी नहीं स्वीकारते।  हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि मनुष्य तथा पशु पक्षियों की इंद्रियों में उपभोग की प्रवृत्ति जैसी होती हैं, अंतर केवल बुद्धि का रहता है जिस कारण मनुष्य एक पशु पक्षी की अपेक्षा कहीं अधिक व्यापक रूप से संसार में सक्रिय रहता है।  वामपंथी मानते हैं कि मनुष्य की इकलौती जरूरत रोटी होती है उसे वह मिल जाये तो वही ठीक बाकी बाद की बात उसे सोचना नहंी चाहिये वह तो केवल राज्य प्रबंध का काम है। इसके बाद वामपंथी शीर्ष पुरुष सारे बड़े पद हड़प कर प्रजा को बंधुआ बना लेते हैं।
वामपंथी तानाशाह मनुष्य को पशु पक्षियों की तरह केवल रोटी तक ही सीमित देखना चाहते हैं। वाणी की अभिव्यक्ति प्रतिकूल होने पर वह किसी की हत्या भी करवा देते हैं।  कास्त्रो एक खूंखार व्यक्ति माना जाता था।  हमारे  देश के वामपंथी विचाराकों का वह आदर्श है।  यह अलग बात है कि उसके मरने के बाद अपने ही देश के लोगों पर किये गये अनाचार की कथायें जब सामने आयेंगी तब वह उसे दुष्प्रचार कहेंगे। कास़्त्रों ने क्यूबा को एक जेल बनाकर रखा था। उसके राज्यप्रबंध की नाकामियों से ऊबे लाखों शरणार्थी अमेरिका जाते रहे हैं।  हम उम्मीद करते हैं कि कास्त्रो की मौत के बाद क्यूबा एक ताजी आजादी की सांस ले सकेगा।
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Thursday, November 24, 2016

एटीएम अपडेट होने पर नोटबंदी से पैदा मंदी खत्म हो जायेगी-हिन्दी संपादकीय (bazar woulld Standup After ATM UpDate-HindiEditorial)

                            जरूरतें समाप्त नहीं होने वालीं और वह व्यापार चलाती हैं।  जितनी इस समय मंदी है उतनी ही कुछ समय बाद तेजी आयेगी। वैसे पैसा वही लोग रोक रहे हैं जिन्हें सौ रुपये एटीएम से मिले हैं। जब सभी एटीएम अपडेट हो जायेंगे और उसमं से पांच सौ और दो हजार के नोट निकलेंगे तब झख मारकर लोग खर्च करेंगे।  कुछ लोगों ने हमारे साथ बातचीत में माना कि हां पांच सौ और दोहजार रुपये के नोट निकल रहे हैं उन पर भीड़ शहर के मुख्य स्थानों  के एटीमों से ज्यादा हैं-वहां के एटीएम अपडेट हो गये हैं। वह पांच सौ और दो हजार के नोट निकल रहे हैं। हमारा अनुमान है कि एक दिसम्बर के बाद बाज़ार में रुपया तेजी से आयेगा और पुरानी मंदी की भरपाई करते हुए तेजी आयेगी।
                नोटबंदी पर उत्पात की संभावना त्वरित रूप से थी जो खत्म हो गयी है। अब अगर कहीं होता है तो वह कालेधन वालों से प्रायोजित व उनके उनके बौद्धिकों से प्रेरित माना जा सकता है। हमने अपने शहर का दौरा  किया। बाहर रहने वाले मित्रों से बात की।  परेशानी है पर कहीं खर्च का संकट नहीं है। आज सरकार ने पता नहीं कौनसा दाव खेला कि लाईने बीस फीसदी रह गयी।  शायद यह अपने ही बैंक में नोट बदलने तक सीमित रखने  या केवल वरिष्ठ नागरिकों को नोट बदलने की सुविधा देने के निर्णय का परिणाम था कि लाईन एकदम कम हो गयी इसका पता नहीं। एटीएम पर अधिकतर लोग ऐसे मिले जो पहले निकाल चुके थे। इनमें तो कुछ ऐसे थे जो आज ही पहले से कहीं निकलवाकर आ गये तो उनका एटीएक कार्ड काम नहीं कर रहा था।  लोगों में न उत्साह है न उकताहट।  ऐसे में एक बासी हो चुके फैसले पर किसी कठोर प्रतिक्रिया की संभावना नहीं है। 
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Wednesday, November 23, 2016

कौटिल्य और चाणक्य के ज्ञान बिना अर्थशास्त्र-लघु हिन्दी व्यंग्य (What Econmics without Kautilya and chanakya-Hindi Short Satire


                          देश के कुछ बड़े अर्थशास्त्री यह सोचकर परेशान है कि नोटबंदी जैसा बड़ा फैसला उनसे पूछे बगैर ले लिया।  वैसेे हमारे देश में अनेक लोग अर्थशास्त्र पढ़ते हैं पर जिनको कोई बड़ा ओहदा मिलता है तो उनको ही अर्थशास्त्री की पदवी  संगठित प्रचार माध्यम देते हैं। जैसे हम हैं। वाणिज्य स्नातक की उपाधि प्राप्त करने में हमें अर्थशास्त्र से दो चार होना पड़ा था।  लेखक होने के नाते हमें अर्थशास्त्री  मानना चाहिये पर कोई बड़ा पद नहीं मिला तो कोई मानना तो दूर हमारी कोई बात सुनता भी नहीं।  नोटबंदी हमने खूब अंतर्जाल पर लिखा पर कहीं कोई संदेश हिट नहीं हो पाया।  वजह साफ है कि कोई बड़ा पद नहीं मिला जिससे लोग हमको गूगल पर ढूंढते। 
               अब कहना तो नहीं चाहते पर सच यह है कि भारत में इतने पढ़ेलिखे अर्थशास्त्री हुए पर कुछ नहीं कर पाये। देश में गरीबी, भ्रष्टाचार और बेईमानी बढ़ती रही। आधारगत ढांचा-बिजली, पानी और आवागमन के लिये सड़कें पूरी तरह से बनी नहीं। बहुत पहले इस पर राजनीतिक चर्चाओं में मशगूल रहने वाले  एक चायवाले ने हमसे कहा था कि ‘ऐसे पढ़े लिखे अर्थशास्त्रियों से हम अच्छे हैं जो बड़े पदों पर बैठकर भी देश की असली समस्याओं का निराकरण नही कर पा रहे। मुझे बिठा दो पूरे देश का उद्धार कर दूं।’
          वह चायवाला इतनी अच्छी चाय बनाता था कि नगर निगम और जिला कार्यालय के अधिकारी तक उसके यहां चाय पीने आते थे। यह अलग बात है कि अतिक्रमण विरोधी अभियान के चलते उसकी गुमटी उठाकर फैंक दी गयी तब उसने दूसरी जगह जाकर लस्सी की दुकान खोली।  हमने हमेशा उसे प्रसन्नचित्त देखा। वह लस्सी के व्यापार में भी हिट रहा। उसकी राजनीति टिप्पणियों से हम सदा प्रभावित रहे।  उसके व्यवहार से हमने सीखा था कि जागरुक तथा विद्वान  होने के लिये पढ़ालिखा होना जरूरी नहीं है।  जो अपना व्यापार चला ले वह देश को भी चला सकता है। यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि नोटबंदी के विरोधी भी केवल गरीबों, किसानों और मजदूरों की परेशानी की आड़ लेकर जूझ रहे हैं।  यहां तक कि जनवादी भी अपना पुराना रोना रो रहे हैं। विरोध में कहने के लिये उनसे ज्यादा तो हमारे पास ज्यादा भारी भरकम तर्क हैं पर हम इंतजार कर रहे हैं कि आखिर यह नोटबंदी देश में किस तरह का परिणाम देती है।
                  वैसे भी अपने यहां कौटिल्य तथा चाणक्य जैसे अर्थशास्त्री हुए है। यकीन मानिये उनमें से किसी ने एडमस्मिथ और माल्थस को नहीं पढ़ा था जिसे पढ़कर आज के अर्थशास्त्री अपने श्रेष्ठ होने का दावा करते हैं। वैसे हम स्वयं को संपूर्ण अर्थशास्त्री मानते हैं क्योंकि हमने एडमस्मिथ, माल्थस के साथ कौटिल्य तथा चाणक्य का अर्थशास्त्री भी पढ़ा है। हमारा मानना है कि देशी अर्थशास्त्र समझने वाला ही देश का भला कर सकता है और वह कोई मजदूर भी हो सकता है और कारीगर भी।

Thursday, November 03, 2016

आत्महत्या करने वाला कभी समाज नायक नहीं होता-हिन्दीेलेख (Suicider not be Hero For Society-Hindi Article)

                   एक पूर्व सैनिक ने वन रैंक वन पैंशन को लेकर आत्महत्या कर ली।  इसको लेकर देश में तमाम तरह का  विवाद चल रहा है। हमारा मानना है कि चाहे कुछ भी इस विषय को  सरकार के विरुद्ध आंदोलन से जोड़ना गलत है क्योंकि इसके पीछे घरेलू, सामाजिक तथा आर्थिक कारण अधिक जिम्मेदार हैं जिसकी चर्चा पुरुष बहुत कम लोग करते हैं-इस भय से कि उनके बेकार या कमाऊ न मान लिया जाये। हमने अपने सेवानिवृत्त साथियों से चर्चा की। उन्होंने एक पैंशनधारी के अधिक राशि की मांग लेकर आत्महत्या के प्रकरण को वैसा मानने के लिये तैयार नहीं है जैसा कि बताया जा रहा है।  सबसे बड़ी बात आप सेना की छह वर्ष क नौकरी पर जिंदगी पर इतना निर्भर नहीं रह सकते जितना सोचते हैं।  यहां पैंतीस से चालीस वर्ष नौकरी करने वाले भी हैं वह जानते हैं कि सभी को एक जैसी पैंशन इसलिये भी नहीं मिल सकती है क्योंकि नौकरी की अवधि अब मायने नहीं रखती पर अंतिम वेतन का महत्व भी नकारा नहीं जा सकता।  पांच वर्ष पूर्व नौकरी छोड़ने वाला आज नौकरी छोड़ने वाले जितनी पैंशन नहीं पा सकता-प्रोत्साहन के रूप में कुछ रकम बढ़ायी जाये यह बात अलग है। एक अन्य फेसबुक पर हमारे सेवानिवृत साथियों ने आत्महत्या करने वाले पैंशनधारी का समर्थन करने से इंकार तक किया है।
                  वर्तमान सरकार पर जवानों या कर्मचारियों के प्रति उदासीनता का आरोप लगाना गलत है।  पिछली सरकारों ने वेतन आयोग की सिफारिशें लागू कर अच्छा एरियर इसलिये दिया क्योंकि वह देर से लागू की गयीं-उसमें भी पुराने भत्तों का एरियर नहीं दिया गया था। इस सरकार ने तत्काल वेतन आयोग की रिपोर्ट लागू की इसलिये एरियर अधिक नहीं दिया। भत्तों पर विवाद की वजह से अभी पुराने वेतनमान से दिया जा रहा है और जल्दीउसका निर्णय भी हो जायेगा।  ठीक है भत्ते कुछ देर से मिलेंगे पर उनका एरियर भी तो मिलेगा।  जबकि पहले नहीं मिलते थे।  पैंशन से पूरा घर नहीं संभल सकता पर पति पत्नी तो सहजता से पल जाते हैं-यही पैंशन देने का मकसद है।  इससे आगे की जिम्मेदारी सरकार पर डालना गलती है।  किसी की पैंशन इतनी कम नही है कि वह आत्महत्या करे ओर सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाये।
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