समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, March 21, 2012

रहीम के दोहे-निंदक को दया का पात्र समझना चाहिए

             आधुनिक युग में भौतिकतवाद ने अनेक ऐसे प्रायोजित नायकों को स्थापित किया है जो धर्म, कला, साहित्य, समाज तथा आर्थिक जगत के शिखर पर पहुंचकर लोगों को सिखाने लगते हैं कि जीवन कैसे जिया जाये? वह वस्तुओं का विज्ञापन करते हैं तो समाज की व्यवस्था में भी अपना दखल इस तरह देते हैं कि जैसे उन जैसा महाज्ञानी कोई न हो। यह प्रायोजित नायक अगर वस्तुओं के उत्पादों का विज्ञापन करते हैं तो समाज पर नियंत्रण करने वाले ठेकेदारों के साथ खड़े होकर उनको लोगों पर नियंत्रण करने में भी सहायक बनते हैं। आकर्षण तथा विश्वास के जाल में फंसा आम जनमानस अध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में अच्छे बुरे की पहचान नहीं कर पाता। यही कारण कि आजकल के युवा गीत, संगीत तथा नृत्य के जाल में फंसा है। अभी हाल ही में एक तमिल अंग्रेजी मिश्रित कोलेवरी डी को हिन्दी भाषी क्षेत्रों में भारी लोकप्रियता हासिल हुई। शब्द किसी के समझ में नहीं आते पर संगीत पर ही लोग थिरक रहे हैं। एक प्रेमिका से निराश प्रेमी के शब्दों को समझे बिना केवल संगीत की धुन पर थिरकना इस बात का प्रमाण है कि लोग आत्मज्ञान से इतने परे हैं कि उन्हें उछलकूद की जिंदगी जीकर मन बहलाना पड़ रहा है।
कविवर रहीम के अनुसार
--------------
अनुचित वचन न मानिए, जदपि गुराइस गाढ़ि।
है ‘रहीम’ रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढ़ि।।
              ‘‘कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हों उसकी गलत बात नहीं मानिए भले ही वह कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हो। भगवान श्री राम ने अपने पिता की बात मानते हुए वनगमन किया पर फिर भी उनसे अधिक यश उस भरत को प्राप्त हुआ जिन्होंने मां की आज्ञा ठुकराकर राज्य त्याग दिया।’’
‘‘अब ‘रहीम’ मुश्किल बढ़ी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलें न राम।।
‘‘दुनियां में दो महत्वपूर्ण काम एकसाथ करना अत्यंत कठिन है। सच का साथ लो तो जग नहीं मिलता और झूठ बोलो तो परमात्मा से साक्षात्कार नहीं हो पाता।
         आत्म ज्ञान के अभाव झूठ का इतना बोलबाला हो गया है कि लोग यह सोचकर चलते हैं कि भगवान उनके दुष्कर्मों को नहीं देख रहा है। धर्म और अध्यात्म का प्रचार करने वाले लोग पर्दे के पीछे विलासिता का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। स्वयं कभी परमात्मा का स्वरूप जो लोग समझ नहीं पाये वह दूसरों को समझा रहे हैं। जीवन की सच्चाई यह है कि अगर सत्य की राह चलो तो लोग साथ नहीं होते। जब लोग साथ होते हैं तो वह असत्य की राह पर चलने को विवश करते हैं ऐसे में शुद्ध भाव से भक्ति अत्यंत कठिन है। शुद्ध भाव से भक्ति न होने पर मन को शांति नहीं मिलती। यही कारण है कि आज आधुनिक साधनों से सुसज्तित आदमी के मन में भी शांति नहीं है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की धर्म संदेश पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की अमृत संदेश-पत्रिका
6.दीपक भारतदीप की हिन्दी एक्सप्रेस-पत्रिका
7.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

Tuesday, March 13, 2012

चाणक्य नीति-कायरों की सेवा से बहादुरों की संगत भली (chnkya niti in hindi-kayron se bahaduron se sangat bhali)

                     पूरे  विश्व की समस्त धार्मिक विचारधारों में स्वर्ग और नर्क की कल्पना को लेकर अनेक धारणाएँ  प्रचलित हैं।  ऐसा नहीं है कि स्वर्ग या नरक की स्थिति केवल मरने के बाद ही दिखाई देती है। अपने पास अगर ज्ञान हो तो इसी पृथ्वी पर स्वर्ग भोग जाता है। आजकल भौतिकवाद के चलते मनुष्यों की अनुभूतियों की शक्तियां कम हो गयी हैं। वह तुच्छ उपलब्धियों पर इतराते हैं तो थोड़ी परेशानियों में भारी तनाव उन पर छा जाता है। आजकल कहा भी जाता है कि इस संसार में कोई सुखी नहीं है। दरअसल लोग सुख का अर्थ नहीं जानते। सुख के साधनों के नाम अपने घर में ही कबाड़ जमा कर रहे हैं। संबंधों के नाम पर स्वार्थ की पूर्ति चाहते हैं। स्वार्थों के लिये संबंध बनाते और बिगाड़ते हैं। क्रोध को शक्ति, कटु वाणी को दृढ़ता और दुःख के नाम पर दूसरे के वैभव से ईर्ष्या पालकर मनुष्य स्वयं ही अपने दैहिक जीवन को नरक बना देता है। किसी को यह बात समझाना कठिन है कि वह अपने जीवन की स्थितियों के लिये स्वयं जिम्मेदार हैं। लोग भाग्यवादी इतने हैं कि अपने ही कर्म को भी उससे प्रेरित मानते है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
----------------- 
                                   अत्यन्तकोपः कटुका च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम्।
                                  नीचप्रसंङ्गा कुलहीनसेवा चिह्ननि देहे नरकास्थितानाम्।।
               ‘‘अत्यंत क्रोध करना अति कटु कठोर तथा कर्कश वाणीक होना, निर्धनता, अपने ही बंधु बांधवों से बैर करना, नीचों की संगति तथा कुलहीन की सेवा करना यह सभी स्थितियां प्रथ्वी पर ही नरक भोगने का प्रमाण है।’’  
                        गम्यते यदि मृगेन्द्र-मंदिर लभ्यते करिकपोलमौक्तिम्।
                      जम्बुकाऽऽलयगते च प्राप्यते वत्स-पुच्छ-चर्म-खुडनम्।।
             ‘‘कोई मनुष्य यदि सिंह की गुफा में पहुंच जाये तो यह संभव है कि वहां हाथी के मस्तक का मोती मिल जाये पर अगर वह गीदड़ की गुफा में जायेगा तो वहां उसे बछड़े की पूंछ तथा गधे के चमड़ का टुकड़ा ही मिलता है।’’
                     हमें अपने जीवन को अगर आनंद से बिताना है तो अपने आचरण, विचार तथा व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए। कायर, कलुषित व बीमार मानसिकता वाले, व्यसनी तथा लालची लोगों से संबंध रखने से कभी हित नहीं होता है। ऐसे स्थानों पर जाना जहां तनाव के अलावा कुछ नही मिलता हो वर्जित करना ही श्रेयस्कर हैै। जिनका छवि खराब है उनसे मिलना अपने लिये ही संकट बुलाना है। इस संसार में ऐसे पाखंडी लोगों की कमी नहीं है जो अपना काम निकालने के लिये दयनीय चेहरा बना लेते हैं पर समय आने पर सांप की तरह फुंफकारने लगते हैं। इसलिये उत्साही, संघर्षशील तथा अध्यात्मिक रुचि वालों की संगत करना ही जीवन के लिये लाभप्रद है। अच्छे लोगों से संगत करने पर अपने विचार भी शुद्ध होते हैं तो मन के संकल्प भी दृढ़ होते हैंे जो आनंदमय जीवन की पहली और आखिरी शर्त है।
------------
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की धर्म संदेश पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की अमृत संदेश-पत्रिका
6.दीपक भारतदीप की हिन्दी एक्सप्रेस-पत्रिका
7.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

Sunday, March 04, 2012

अथर्ववेद के आधार पर चिंत्तन-अपने हृदय के पवित्र होने की कामना करें (atharvaved-hridya ke pavitra hone ki kamna)

                  हम लोग भले ही यह सोचते हैं कि यह संसार ईश्वर के अनुसार चलता है पर सच यह है कि हमारे संकल्पों के अनुसार ही हमारा जीवन क्रम निर्मित होता है। जैसे हमारा विचार या संकल्प है वैसा ही हमारे सामने दृश्य घटित होता है। अगर दृश्य हमारे प्रतिकूल है तो हम दूसरों को दोष देते हैं। कभी भाग्य तो कभी भगवान की मर्जी बताकर आत्ममंथन से बचने का प्रयास करते हैं। कभी मित्र, कभी रिश्तेदार तो कभी परिवार के सदस्यों पर दोषारोपण कर यह मानते हैं कि हम और हमारा संकल्प तो हमेशा ही पवित्र रहता है। यह अज्ञान का प्रमाण है। आत्ममंथन की प्रक्रिया से दूर अज्ञानी लोग इसी कारण ही अपने जीवन में भारी कष्ट उठाते हैं।
अथर्ववेद में कहा गया है कि
----------------
सुश्रतौ कर्णो भद्रश्रतौ कर्णो भद्र श्लोकं श्रुयासम्।
‘‘हमारे दोनो कान उत्तम विचार सुने। कल्याणकारी वचन तथा कल्याणकारी प्रशंसा सुनने को मिले।’’
बृहसपतिर्म आत्मा तृमणा यनाम हृद्यः।।
‘‘हमारी आत्मा ज्ञान युक्त हो और मनुष्य में मनन करने वाला हृदय पवित्र हो।’’
                जब हम परमात्मा का स्मरण करते हैं तो उससे सांसरिक विषयों में सफलता की ही मांग करते हैं जबकि यह संसार कर्म और फल के सिद्धांत के आधार पर यंत्रवत चलता है। आम बोयेंगे तो आम पैदा होगा और बबूल बोने पर कांटों का झाड़ हमारे सामने खड़ा होगा। ज्ञानी लोग यह जानते हैं पर अज्ञानियों का झुंड इससे बेखबर होकर सुख में प्रसन्न हेता है और दुःख में विलाप करता है। अपने मुख से अच्छी वाणी बोलना चाहिए तो अपने कानों से ऐसी बातें सुनना चाहिए जो सुख देने के साथ ही मन स्वच्छ करने वाली हो। अपनी आंखों से किसी के संताप का दृश्य देखने की चाहत की बजाय प्रकृति और संसार के विषयों में विराजमान सौंदर्य की तरफ अपनी दृष्टि रखना चाहिए। दूसरों की निंदा या दोष का अध्ययन करने की बजाय सभी के गुण देखकर उसकी प्रशंसा करने से मन पवित्र होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि जैसी कल्पना और हमारा विचार होता है वैसी ही हमारे सामने घटनायें होती हैं। इसलिये जहां तक हो सके अच्छा देखो, अच्छा खाओ और अच्छा सोचो।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की धर्म संदेश पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की अमृत संदेश-पत्रिका
6.दीपक भारतदीप की हिन्दी एक्सप्रेस-पत्रिका
7.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें