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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, May 22, 2011

संत कबीर वाणी-अधिक चतुराई दिखाने से कोई लाभ नहीं (sant kabir vani-adhik chaturai dikhane se labh nahin)

             मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह बुद्धिमान दिखना चाहता है। वैसे अन्य सांसरिक प्राणियों की अपेक्षा मनुष्य चतुर माना जाता है पर वह इससे संतुष्ट नहीं होता बल्कि वह हर मनुष्य दूसरे से अधिक बुद्धिमान दिखने के लिये मूर्खतापूर्ण हरकतों पर उतारु हो जाता है। कई बार तो कुछ लोग चुतराई में भारी हानि भी उठाते हैं तो अनेक लोग चतुर दिखने के लिये व्यर्थ की मेहनत करते हैं।
           इस विषय पर संत कबीर कहते हैं कि
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              चतुराई क्या कीजिये, जो नहिं शब्द समाय
               कोटिक गुन सूवा पढै, अंत बिलाई खाय
                 "उस चतुरता से क्या लाभ? जब सतगुरु के ज्ञान-उपदेश के निर्णय और शब्द भी हृदय में नहीं समाते और उस प्रवचन का भी फिर क्या लाभ हुआ। जैसे करोड़ों गुणों की बातें तोता सीखता-पढता है, परंतु अवसर आने पर उसे बिल्ली खा जाती है। इसी प्रकार सदगुरु के शब्द वुनते हुए भी अज्ञानी जन यूँ ही मर जाते हैं।"
       एक मजेदार बात यह है कि अध्यात्मिक विषय हमारे देश में सदैव लोकप्रिय रहे हैं और यही कारण है कि कथाकारों, प्रवचनकर्ताओं तथा सत्संगी गुरुओं ने लोगों की भावनाओं का दोहन करते हुए एक तरह से कपंनीनुमा संगठन खड़े कर लिये हैं। वह ज्ञान बेचते है लोग खरीदते हैं पर नतीजा सिफर! आज देश में जो भ्रष्टाचार, आतंकवाद तथा हिंसा का जो माहौल है उसे देखते हुए कौन मानेगा कि यह देश धर्मभीरु लोगों का देश है। लोग सत्संग में जाते हैं ज्ञान की बातें सुनते हैं और मासूमों की तरह आकर बाहर अपना तत्वज्ञान दिखाते हैं मगर जब सांसरिक व्यवहार की बात आये तो सभी चतुर हो जाते हैं। तब उनको लगता है कि धर्म की बात तो सुनने सुनाने में अच्छी है कर्म पर वह लागू नहीं होती। परिणाम यह होता है कि वह न केवल अपने दुष्कर्म का परिणाम भोगने के साथ ही भारी तनाव भी झेलते हैं। अपने लिये उपस्थित बुरे परिणामों के लिये किये गये कर्म उनको याद नहीं रहते।
                हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि जैसे कर्म करोगे वैसे फल सामने आयेंगे। जिस तरह गाय का बछड़ा अनेक गायों के बीच में से होता हुआ अपनी मां के पास पहुंचता है उसी तरह मनुष्य का कर्म भी परिणाम लेकर उसके पास आता है। यह सब जानते हैं पर फिर भी चतुराई करते हैं और अंततः परिणाम भी भोगते हैं।

लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
सूचनार्थ

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